Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : २९ :
रागथी जुदो पडीने आवा आत्मस्वभावने अनुभवमां लीधो त्यां अनंता
समयसार ज्ञान अने राग वेदननी अत्यंत भिन्नता देखाडे छे.
‘समयसार’ एटले आनंदमय विज्ञानघन आत्माने
प्रकाशनारुं अजोड जगतचक्षु
प्र. वैशाख वद बीजे चोरीवाडथी रणासण पधार्या. रणासण तद्न नानुं गामडुं;
ज्यां त्रण शिखरवाळुं जिनमंदिर जाणे के जिननाथना रत्नत्रयमार्गने प्रसिद्ध करी रह्युं
छे. गुरुदेवना प्रतापे अत्यारसुधीमां जयां–ज्यां पंचकल्याणक थया तेमां सौथी नानुं
गाम रणासण हशे. आवा नाना गाममां महान मांगलिक संभळावतां गुरुदेवे कह्युं के
अहो, आ भगवान समयसार अद्वितीय जगतचक्षु छे. शुद्धआत्मा ते समयसार, अने
तेने देखाडनारुं आ शास्त्र ते समयसार, एम आत्मरूप अने शास्त्ररूप बंने समयसार
अद्वितीय जगतचक्षु छे, स्व–परनुं भिन्न–भिन्न स्वरूप जेम छे तेम अद्धितीय–
अतीन्द्रिय चैतन्यनेत्र जेने खूल्यां छे ते आत्मा पोते समयसार छे, पोताना स्वभावने
प्रकाशवामां तेमज जगतने जाणवामां ते अद्धितीय चक्षु छे; स्व–परने साक्षात्
जाणवानी एवी ताकात जगतना बीजा कोई पदार्थमां नथी. आत्मा पोते पोताने
प्रत्यक्ष जाणे, ने जगतने पण प्रत्यक्षज्ञान वडे जाणे–एवो तेनो अद्वितीयस्वभाव छे;
रागमां के ईन्द्रियज्ञानमां एवी ताकात नथी. मनथी ने रागथी पार स्वंसवेद्य आत्माने
आ समयसार प्रत्यक्ष करावे छे. ‘अहो, आत्मानो अचिंत्यवैभव आ समयसारे
देखाडयो छे. ’ ‘समयसार’ ना पक्षी एटले के शुद्धात्माना पक्षरूपी पांखवाळा धर्मी
जीवो निरालंबी