Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
रह्या छे–ते दश्य हतुं. कुंदकुंदप्रभुना आकाशगमननुं हालतुंचालतुं दश्य आकर्षक हतुं.
बीजा दश्यमां नेमप्रभुनो रथ, राजुलनी उत्सुकता अने पशुओनो बंधनमुक्ति माटेनो
चित्कार–एनुं हालतुंचालतुं दश्य हतुं: त्रीजा द्रश्यमां–समाधिमरण माटे मुनिराजनी
शूरवीरता, बीजा मुनिओ द्धारा तेमनी सेवा–वैयावच्च, अने आचार्य द्धारा तेमने
शूरवीरता जगाडनारो उपदेश–एनुं द्रश्य हतुं. ... हलनचलननी चेष्टा सहित
मुनिराजोनुं आ द्रश्य, अहा! मुनिजीवननी उर्मि जगाडतुं हतुं, मुनिसेवानी ने
साधर्मीप्रेमनी ऊंची प्रेरणा आपतुं हतुं. (शूरवीरसाधक पुस्तिकामां आ चित्र छपायेल
छे, तेना उपरथी अहींनी रचना थई हती.) त्यार पछी बाळकोनुं धार्मिकप्रदर्शन
बाळकोमां ऊंचा संस्कार रेडवानी प्रेरणा आपतुं हतुं. रात्रे रंगबेरंगी कळापूर्ण
प्रकाशरचना पण दूरदूर सुधी धर्मोत्सवनो झगझगाट फेलावती हती. मंडपमां दाखल
थतां ज सामे भव्य प्रतिष्ठावेदी शणगारथी अने केटलाय जिनबिंबोथी शोभी रही हती.
अहा, गुरुकहानना प्रतापे ठेरठेर आजे जिनेन्द्रसमूह जोवानुं सौभाग्य मळे छे.
दररोज विशाळमंडपनी भरचक सभामां सवारे समयसारमां ज्ञायकभावनुं अने
बपोरे पद्मनंदीमांथी श्रावकोना धर्मोनुं वर्णन थतुं. अनुभूतिनुं अद्भूत वर्णन अने
श्रावकनी धर्म–द्रढता देव–गुरुनो प्रेम वगेरेनुं वर्णन सांभळतां मुमुक्षुओ आनंद विभोर
बनता. कानजीस्वामी प्रवचनमां अवारनवार सत्य जैनमार्गनी अने दिगंबर
मुनिवरोना अपार महिमानी वात संभळावता त्यारे सभाजनोनां हदय हर्षथी उल्लसी
जता हता ने मुनिवरो प्रत्येना भक्ति–बहुमानथी हदय गदगदित थई जता हता.........
वाह! आवा मुनिओ अमने गुरु तरीके मळ्‌या ने आवो सत्य मोक्षमार्ग मळ्‌यो!
प्रवचनसभामां अनेक त्यागीओ–विद्धानो–प्रसिद्ध कार्यकरो देशभरना मुमुक्षुओ
अने बाळको, सौ एकसाथे एकतानपणे चैतन्यरसनुं श्रवणपान करता. जैनसमाजनुं
महान गौरव आ विशाळसभामां प्रगट थतुं, ने गुरुदेव जिनमार्गने अत्यंत महिमा
पूर्वक समजावता हता. विविध विद्धानोनां भाषणोनी तथा कविओनां अध्यात्म
काव्योनी वृष्टि पण चालु ज हती. आ रीते शरूआतनां छ दिवस तत्त्वज्ञाननी मुख्य
ताथी भरपूर कार्यक्रमो चाल्या, सातमा दिवसथी प्रतिष्ठा संबंधी कार्यक्रमो शरू थाय.
प्र. वै. वद १० ना रोज सवारमां श्री जिनेन्द्रदेवने तथा प्रतिष्ठा माटेना
भगवंतोने श्री प्रतिष्ठामंडपमां धामधूमथी बिराजमान कर्यां. मंडपमना आंगणे जैन
धर्मनुं ध्वजारोहण–झंडारोपण तलोदना भाईश्री मंगळदास जीवराजना हस्ते थयुं. तथा
समवसरणमंडलविधाननी पूजानो प्रारंभ थयो. वद ११ नी सवारमां नांदीविधान.