Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
यात्रिकोना आगमननो प्रवाह सतत चालु ज हतो. अंतिम बे–त्रण दिवसोमां तो
हजारो यात्रिकोनुं धोधमार आगमन थयुं हतुं; कुल दशबार हजार यांत्रिको उपरांत
आसपासना गामडाओमांथी दश हजारथी वधु माणसो रोज उत्सव जोवा आवता हता.
आ रीते हजारनी वस्तीनुं आ गाम प्रतिष्ठाना दिवसे तो पचीस हजार जेटली
मानवमेदनीथी ऊभरातुं हतुं.
रात्रे पंचकल्याणकना प्रारंभिक द्रश्योमां ईन्द्रसभा, नेमतीर्थंकरना
गर्भकल्याणकनी तैयारी, समुद्रविजय महाराजानी राजसभा, देवीओ द्वारा शिवामातानी
सेवा वगेरे द्रश्यो थया हता. ईन्द्रसभा अने राजसभाओमां सुंदर अध्यात्म चर्चाओ
वारंवार थती हती–जे सांभळी मुमुक्षु सभाजनो तो डोली ऊठता हता ने गुरुदेव पण
प्रसन्नता व्यक्त करता हता. आ चर्चाओनुं आलेखन ब्र. हरिभाई द्धारा थतुं हतुं; अने
समुद्रविजयराजा तरीके भाईश्री बाबुभाई पोते स्थपायेल होवाथी चर्चानो रंग सारो
जामतो हतो. शिवादेवी माता तथा सौधर्मेन्द्र वगेरे पण चर्चामां उत्साहथी भाग लेता
हता. आ वखतना पंचकल्याणकमां आ अध्यामरसभरी तत्त्वचर्चा ए एक विशेषता
हती.
गर्भकल्याणक पूर्वे समुद्रविजय–महाराजानी राजसभा पहेली–वहेली भराणी ते
वखते तेमां नीचे मुजब चर्चा थई–
समुद्रमहाराजा–अहा, आजनी आ राजसभा कोई अद्भूत लागे छे. आजे तो
अंतरमां कोई एवी प्रसन्नता अनुभवाय छे के जाणे रत्नत्रयधर्मना अंकुरा
फूटी रह्या होय! अहा, जाणे आकाशमांथी कोई कल्पवृक्ष ऊतरीने मारे
आंगणे आवी रह्युं होय!
सभाजन–महाराज! आपनी आजनी वात सांभळीने अमने पण घणी प्रसन्नता
थाय छे, ने आपने प्रार्थना करीए छीए के आजे राजसभामां बीजा बधा
कार्यो मुलतवी राखीने आपना श्रीमुखे धर्मनी चर्चा ज सांभळीए.
महाराजा–वाह, धर्मचर्चाथी उत्तम बीजुं शुं होय! खुशीथी आजे सौ धर्मचर्चा करो.
सभाजन–महाराज! आ संसारना अनेक विचित्र प्रसंग वच्चे रहेवा छतां
ज्ञानी अलिप्त केम रही शकता हशे?
महाराजा–गमे ते प्रसंग वखते पण ‘हुं ज्ञान छुं’ एवी स्वतत्त्वनी बुद्धि धर्मीने