Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म : द्वि. वैशाख: २४९८
तारो पुत्र मोटो थाशे, ए परमात्मा बन जाशे,
जेने देखी समकित जीवो पामशे.
स्तुति पछी देवीओ शिवादेवी माताने कहे छे–
१. अहो माता! सम्यक्त्वधारक रत्न तारी कुंखे आवतां तुं पण सम्यकत्ववंती
बनी गई. तारा अंतरमां सम्यकत्वरत्न बिराजी रह्युं छे, तेने अमारा नमस्कार छे.
२. देवी! आपणी स्त्री पर्यायने लोको निंद्य कहे छे पण तमे तो तीर्थंकर प्रभुनी माता
थईने जगतमां पूज्य बन्या.
३. हे माता! जगतमां लाखो स्त्रीओ पुत्रने तो जन्म आपे छे, पण तीर्थंकर
जेवा पुत्रने जन्म देनारी माता तो आ भरतक्षेत्रमां तमे एक ज छो.
४. अहा, आ निंद्य स्त्रीपर्याय पण जे सम्यकत्वना प्रतापे पूजय बनी ते
सम्यकत्वना महिमानी शी वात!
प. माता! तारुं अंतर अति उजवळ छे, पवित्र छे, केमके तेमां सम्यग्दर्शन
सम्यग्ज्ञान ने अवधिज्ञान जेवां रत्न बिराजे छे.
६. हे माता! तीर्थंकरना आत्मानो स्पर्श पामीने तुं धन्य बनी. जे त्रण
जगतनो नाथ..... ए तारो बाळक कहेवायो; अने तुं जगतनी माता बनी.
७. हे माता! अमे दिनरात तमारी अने तमारा पुत्रनी सेवा करशुं, ने तमारी
जेम अमे पण सम्यकत्व पामीने स्त्रीपर्यायनो छेद करशुं.
८. माता, तमारा मुखनी वाणी सांभळता, जाणे के तमारा पेटमां बेठेला
तीर्थंकर भगवान ज बोली रह्या होय! एवो आनंद थाय छे. माता कहे छे–देवीओ!
तमारी चर्चाथी मने घणो आनंद थयो. अहा! जेना अंतरमां परमात्मा बिराजे तेना
आनंदनी शी वात!
त्यारबाद माताने १६ मंगल स्वप्न आवे छे. बीजे दिवसे (वैशाख वद १३
नी) सवारमां राजसभामां सुंदर तत्त्वचर्चा चाली रही छे त्यां महाराणी शिवादेवी
आवीने मंगल स्वप्ननी वात करे छे; महाराजा कहे छे के आ स्वप्नो तारी कुंखे
तीर्थंकरपरमात्माना अवतारनां सूचक छे. ते सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थाय छे.
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