Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. वैशाख: २४९८ आत्मधर्म : ५७ :
प्रसंगनुं वर्णन करता हता. अने गुरुदेवनो प्रभाव जोईने वारंवार प्रसन्नता व्यक्त
करता हता. प्रवचन बाद जन्मकल्याणक संबंधी केटलीये बोली (उछामणी) थई;
लोकोए खूब ज होंशथी उछामणीमां भाग लीधो ने लाख रूा. उपरांतनी बोली थोडी ज
मिनिटोमां पूरी थई गई. बपोरे जिनमंदिर तथा समवसरणमंदिरनी वेदी शुद्धि–
ध्वजशुद्धि–कळशशुद्धि थई; पू. बेनश्री–बेने पण ए मंगलविधिमां भाग लीधो. रात्रे
कंकुबाई श्राविकाश्रम कारंजाना नानकडा बाळकोए अमरकुमारनी नाटिकाना अभिनय
द्धारा नमस्कारमंत्रनो जे महिमा प्रसिद्ध कर्यो ते सुंदर हतो. साचा दिलना कार्यकरो द्धारा
बाळकोने सारा संस्कार आपवामां आवे तो तेओ केटलुं सुंदर काम करी शके छे ने
जीवनमां केवा ऊंचा संस्कार मेळवी शके छे–ते आ अभिनयमां देखातुं हतुं. ने बाळकोने
आवा संस्कार आपनार बहेनोने धन्यवाद आप्या वगर रहेवातुं नथी.
हवे वैशाख वद १४ आवी ने प्रभु–जन्मनी मंगलवधाई लावी.
ते आप आवता अंकमां वांचशोजी.
(घणी सखत गरमी अने तद्न नाना गामडामां प्रवासने कारणे फत्तेपुर
रामपुरमां जिनबिंब वेदीप्रतिष्ठा महोत्सव
फत्तेपुरमां भव्य पंचकल्याणक महोत्सव बाद वैशाख सुद पांचमनी सवारमां पू.
श्री कहानगुरु फत्तेपुरथी बे माईल दूर रामपुरा गामे पधार्या. सोनगढनी जैनबोडिर्ंगना
गृहपती श्री पमुभाई रामपुराना छे. अहीं नूतन जिनालयमां श्री आदिनाथ भगवान
वगेरे जिनबिंबोनी प्रतिर्ंष्ठानो उत्सव थयो. गुरुदेवना सुहस्ते रामपुराना मुमुक्षु
भाईओए भगवाननी वेदीप्रतिर्ंष्ठा करी.
गुरुदेव अहीं मात्र दोढ कलाक रोकाया. स्वागतविधि बाद मंगल संभळावतां
गुरुदेवे कह्युं के आ आत्मा कर्म अने पुण्य–पापना भावोथी रहित अबद्ध शुद्ध छे; आवा
आत्माने जोयो–अनुभव्यो ते जैनशासननो सार छे; पंदरमी गाथामां जैनशासन
बताव्युं छे. आनंदनो दरियो आत्मा छे तेमां एकाग्र थईने आनंदना अनुभवना टाणां