देख्या के ज्ञाननी निर्मळतामां जातिस्मरण थयुं ने एम जाण्युं के अहो!
आ तो आठमा भवे वजजंघ राजा हता ने तेमनी साथे में (श्रीमतीए)
मुनिराजने आहारदान दीधुं हतुं आत्मा अरूपी छे, देह बदली गयो छे,
छतां मतिज्ञाननी ताकात छे के तेने जाणी ल्ये छे–असंख्य वर्ष पहेलांं
आ ज आत्मा मारी साथे हतो–एम निःशंक केवळज्ञान जेवुं जाणी ल्ये
छे. मतिज्ञाननी पण आटली ताकात, तो केवळज्ञाननी ताकातनी शी
वात!
चैतन्यस्वभावी आत्मानो निर्णय थई जाय, ने मोहनो नाश थईने
सम्यग्दर्शन थाय. भगवंतोए मोहनो नाशनो आवो उपदेश दीधो छे–
तेनुं अलौकिक वर्णन प्रवचनसार गाथा ८०–८२ मां छे.
लीधे नहि, ते वखते रागथी भिन्न चैतन्यआत्मानुं अंदर भान छे ते
मोक्षनुं कारण छे. ऋषभदेव भगवानने वैशाख सुद त्रीजने दिवसे
श्रेयांसकुमारे शेरडीना रसनुं आहारदान दईने पारणुं कराव्युं हतुं. आ
भरतक्षेत्रमां असंख्य वर्षना अंतरे आहारदाननो आ प्रसंग बन्यो,
त्यारे देवोए आकाशमां वाजां वगाडीने ‘अहो दान’ ..... अहो दान’
एवी घोषणा करीने महोत्सव कर्यो. वैशाख सुद बीजनी राते श्रेयांसने
स्वप्न आवेलुं के मारा आंगणे आजे कल्पवृक्ष आव्युं छे! कल्पवृक्ष जेवा
मुनिराज आंगणे पधार्या.... तेमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने जातिस्मरण
थयुं. आठमा भवे मुनिओने दान दीधेलुं ते विधि याद आवी गई, ने
विधिपूर्वक ऋषभमुनिने आहारदान दीधुं. आ रीते दानतीर्थनुं प्रवर्तन
थयुं. मुनिओने आहारदान वगेरे शुभभाव धर्मी श्रावकने आवे छे.
ऋषभभगवाने दिव्यध्वनिवडे भरतक्षेत्रमां धर्मतीर्थंनुं प्रवर्तन कर्युं,
श्रेयांसकुमारे दानतीर्थनुं प्रवर्तन कर्युं.
प्रशंसा पण करे छे.