Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : १३ :
गुरुकहान प्रत्ये परम उपकारभावे सौए श्रीफळ लईने अभिवंदन कर्यु. वीतराग
विज्ञाननगरमां ऊभरायेला दश हजारथी वधु मुमुक्षु जीवो एम प्रसिद्धि करी रह्या हता के
हे गुरुदेव! वीतरागपरमात्मा तीर्थंकर भगवंतोए अने कुंदकुंदचार्य वगेरे सन्तोए
बतावेलो जे आत्मसन्मुखी वीतरागी मोक्षमार्ग आपे अमने देखाडयो छे ते सुंदर मार्ग
अमने गम्यो छे, ते मार्ग अमे स्वीकार्यो छे ने ते मार्गे अमे आवी रह्या छीए. आवा
मार्गनी प्राप्ति आपना ज प्रतापे अमने थई छे तेथी आपनो अवतार अमारा माटे
कल्याणनुं कारण छे; एटले आपनो जन्मोत्सव ऊजवतां खरेखर अमे अमारा
आत्महितनो ज उत्सव ऊजवी रह्या छीए. आवी भावनाथी सौए गुरुदेवने अभिनंधा.
एक मोटी बीजनी रचना उपर बिराजमान कहानगुरु गंभीरपणे शोभता हता.
अहा, वैशाखसुद बीज ए तो जाणे ज्ञाननी उजवळ बीज ऊगी छे... ने उपर पूनमनुं दश्य
एवुं हतुं के जाणे गुरुदेव बीज द्धारा केवळज्ञान–पूर्णिमाने बोलावी रह्या होय! आम बीज
अने पूनमनी वच्चे कहानगुरुनुं दश्य सरस लागतुं हतुं. एक बाजुं हजारो श्रीफळनो ढगलो
हतो; बीजी बाजु शरणाईना मंगलसूर गाजी रह्या हता. देशभरना हजारो मुमुक्षुओनी
लांबी कतार लागी हती, ने जयजयकारना मोटा कोलाहलथी मंडप गाजी रह्यो हतो.
एकाएक बधो शोरबकोर बंध थई गयो.... केम? कारणके गुरुदेवे
गंभीरध्वनिथी सिद्धप्रभुनुं स्मरण करीने मंगलाचरण संभळाववुं शरू कर्युं. समय
सारनी पहेली गाथा द्धारा अनंत सिद्धभगवंतोनुं स्मरण करीने कह्युं के आवा सिद्ध
भगवंतोने आत्मामां स्थापीने तेमनो आदर करतां, तेमना जेवो पोतानो शुद्धआत्मा
लक्षमां लावे छे, ने रागथी भिन्न चैतन्यनुं भान थतां भेदज्ञानरूपी बीज ऊगे छे ते
अपूर्व मंगळ छे. ने आवी बीज उगी छे ते आगळ वधीने केवळज्ञानरूपी पूर्णिमा
थशे.... थशे ने थशे ते उत्कृंष्ट मंगळ छे.
आवुं मांगळिक सांभळीने सौने घणी प्रसन्नता थई. उमंगभर्या वातावरणमां
पूजनादि बाद गुरुदेवे सुंदर प्रवचन द्धारा आनंदमय भेदज्ञानबीजनो महिमा
समजावीने कह्युं के अरे जीव! एकवार आवी ज्ञानीबीज उगाड...... (त्यारे एम थतुं के
वाह गुरुदेव! आपनी वैशाखसुद बीजे तो अमने भेदज्ञानरूपी बीज आपी.)
प्रवचन बाद आजना आनंदप्रसंगे सौए पोतानो हर्षोल्लास व्यक्त कर्यो.... ने
८३ जन्मजयंतिनी खुशालीमां ८३ नी रकमो लगभग एक हजार लखाणी.