: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : २३ :
विशेषमां कापडियाजीए कह्युं के–सम्यग्दर्शन जेवा अध्यात्म विषय उपर आप
महिनाओ सुधी बोली शके छे; ‘समजाय छे कांई? –एम कहेतां कहेतां आप समजावे
छे. त्यारे आपनी वाणी सांभळता ने आपनुं मुख जोतां अमने आनंद आनंद थाय छे.
हसतां–हसतां आप बधुं समजावे छे. आपनी छबीमां, आपनी मुद्रामां कोई अजब
चमत्कार छे; ने समयसार नियमसार–प्रवचसार–अष्टपाहुड जेवा ग्रंथो तो आपना
मगजमां भर्या छे. ३प वर्षमां आपे दिगंबर जैनसमाजमां अजब चमत्कार सजर्यो छे!
लाखो जीवोने दिगंबर जैन बनावीने गजब प्रभावना करी छे. देखो तो सही, आ
नानकडा फतेपुरमां केटला माणसो आव्या छे! ऊतर दक्षिण–पूर्व–पश्चिम बधी
दिशामांथी बडा बडा लोको अहीं आव्या छे! फतेपुरमां तो फतेहनां पूर आव्या छे. आ
नाना फतेपुरमां आपनी ८३मी जन्मजयंति जे ढंगथी उजवाणी ते अत्यारे सुधीनी
जन्मजयंतिमां सौथी महान छे. (सोनगढमां उजवायेली प९मी जन्मजयंति तो कोई
अनेरा उमंगवाळी हती!) मैं महाराजजीको श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं, जैनमित्र
सुरतथी ७० वर्षथी नीकळे छे, तथा “जैनमहिलादशा” अने “दिगंबरजैन” पण
सुरतथी नीकळे छे; ए त्रणे पत्रोना समस्त परिवार तरफथी, तेमज आपणा बधा
तरफथी हुं श्रद्धांजलि अर्पण करुं छुं अने भावना छुं के तेमना द्धारा सदाय धर्मकी
प्रभावना होती रहे.
कारंजा (महाराष्ट्र) ना शेठश्री ऋषभदासजी चवरेना सुपुत्रे गुरुदेवने श्रद्धांजलि
आपतां कह्युं–आज हमारे बडे भाग्यका दिन है जो ऐसे महापुरुषकी जन्मजयंति
मनानेकां हमें आवसर मिला बे वर्ष पहेलांं शिरपुर (अंतरीक्षा पार्श्चनाथ) मां
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा थई त्यारे स्वामीजीनुं प्रवचन सांभळ्युं हतुं. अमने नवी दिशा
मळी. गुजरातकी भूमिने भारतको नेमिनाथ तीर्थंकर दिया; और फिर आज भारतको
कानजीस्वामी जैसा महात्मा भी ईसी गुजरात (सौराष्ट्र) ने ही दिया. पहेले विद्धान
लोग या भट्टाकर लोग समयसारको हमसे छिपाते थे, हमें देखने भी नहीं देते; किन्तु
आज स्वामीजीने उस समयसारको घरघर पहुंचाया, हमारे हाथमें दिया और उसकी
वाणी हमारे कानों तक लाकर रहस्य हमारे हदयमें पहुंचाया. आपका जितना भी
उपकार मानें वह कम हैां मैं महाराष्ट्रकी ओरसे स्वामीजीको श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं.
गौहत्ती आसामना भाईश्री नेमिचंदजीए कह्युं के जगतमां जन्मजयंति घणानी
मनाय छे, परंतु साची जन्मजयंति तो तेनी मनाय छे के जेणे आत्मानी