: २४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
साधना वडे जन्ममरणनो अंत कर्यो होय. पू. महाराजश्रीए आपणने जन्म–मरणना
अंतनो उपाय बताव्यो छे. ते समजीने आपणे फरी जन्म न लेवो पडे एवुं करीए तो
गुरुदेवनी साची जयंति उजवी कहेवाय.
फतेपुरना भाईश्री बाबुभाई ए पण जोशदार भाषामां गुरुदेवनो महिमा
करीने श्रद्धांजलि आपतां कह्युं हतुं के आज अमारुं फतेपुर धन्य बन्युं. गुजरात धन्य
बन्युं, आपणे सौ धन्य बन्या! गुरुदेव विदेहथी अहीं न अवतर्या होय तो आपणने
साचो मार्ग कोण बतावत? मिथ्यामार्गमांथी छोडावीने गुरुदेवे आपणने साचे जैनधर्म
समजाव्यो छे, भगवाननुं स्वरूप ने दिगंबरमुनिओनुं स्वरूप गुरुदेवे ज आपणने
समजाव्युं छे. तेमनो जेटलो उपकार मानीए तेटलो ओछो छे.
आ उपरांत बीजा केटलाय महानुभावो–विद्धानो–कविओ श्रद्धांजलि आपवा
आतूर हता, पण पंचकल्याणक संबंधी कार्यक्रमो चालु होवाथी विशेष समय मळी शक््यो
न हतो.
* पंचकल्याणक अने अध्यात्मचर्चा *
फतेपुरमां पंचकल्याणक वखते अध्यात्मचर्चाओ केवी प्रभावशाळी
हती ते बाबतमां ‘सन्मतिसन्देश’ पत्र लखे छे के पंचकल्याणक के दश्य
ईतने भव्य और प्रभावशाळी होते थे कि जिन्हें देखकर जनता गदगद हो
उठती थी. गर्भकल्याणकमें जब देवियां भगवानकी मातासे प्रश्न–उत्तर
करती थी वे ईतने गंभीर और दर्शानिक होते थे कि जिसे सुनकर जनता
नवीन प्रेरणा प्राप्त करती थी. जन्मकल्याणकके पूर्वमें ईन्द्रकी सभा श्री
आध्यात्मिक चर्चासे ओतप्रोत थी–जिसे सुनकर ऐसा लगता था की
ईन्द्रगुण अपूर्व आत्मानुभूतिका रसास्वादन ले रहे है, उसीका अनुभूतरस
चर्चामें बरस रहा हौ राजयाभिषेकके बाद राजाओंकी धर्मचर्चा अपूर्व
अमृतरसकी वर्षा कर रही थीा तपकल्याणकमें बारह भावनाओंका चिंतन
और लौकांति देवोंका संबोधन संसारी जीवोंको संसार–शरीर–भोगोंसे
उदासीनताका प्रेरणास्त्रोत प्रवाहित कर रहा था. (आत्मधर्मना संपादक
द्धारा लखायेला आ बधा अध्यात्म–संवादोनुं रसास्वादन आत्मधर्म द्धारा
आपने थशे.)