Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
छे. तिर्यंच गतिमांथी पण पुण्य करीने अनंतवार जीव स्वर्गमां गयो. मनुष्यमांथी
अनंतवार स्वर्गमां गयो तेना करतांय तिर्यंचमांथी स्वर्गमां असंख्यगुणा अनंतवार
गयो. आ रीते अनंतवार जीवे पुण्य कर्यां ने स्वर्गमां गयो, तेमज अनंतवार पाप कर्यां
ने नरकमां गयो; पण ए पुण्य अने पाप बंनेथी पार चैतन्यचीज पोते कोण छे तेनुं
भान पूर्वे कदी न कर्युं तेथी चारगतिना भ्रमणमांथी छूटकारो न थयो.
आ आत्मा अतीन्द्रिय आनंदनी चैतन्यशीला छे..... जेम बरफनी मोटी शिला
चारेकोर ठंडकथी भरी होय, तेम आ चैतन्यतरफनी शिला परम शांतरसथी भरेली छे;
तेमां कषायनी आकुळतानो प्रवेश नथी. आव चैतन्यनी शांतिनुं वेदन ते अपूर्व चीज
छे. अने आवा शांतरसने वेदनारा ज्ञानवडे बंधन अटकीने मुक्ति थाय छे.
जेनाथी आत्मानी शांति न मळे ने भवदुःखनो अंत न आवे तेनी कांई किंमत धर्ममां
नथी. पाप अने पुण्य ए कांई नवी चीज नथी, ए तो संसारी जीव अनादिथी करी ज रह्यो छे.
ए बंनेथी पार चैतन्यचीज छे तेनुं भान करवुं, तेनो अनुभव करवो ते अपूर्व चीज छे.
अहा, धगधगता तापमां शीतळ पाणीना सवोरमां डुबकी मारे अने तेने ठंडक
अनुभवाय, तेम आ संसारमां अज्ञान अने कषायना तापमां बळतो अज्ञानी जीव,
चैतन्यतत्त्वनुं भान करीने शांत चैतन्यसरोवरमां ज्यां डुबकी मारे छे त्यां तेने अपूर्व
शांति अनुभवाय छे; अहा! चैतन्यनी जे परम अतीन्द्रिय शांतिनुं तेने वेदन थाय छे.
तेनो अंश पण संसारना राजपदमां के ईन्द्रपदना वैभवमां नथी. आवा शांतरसना
समुद्रमां डुबकी मारीने तेमां लीन थयेला मुनिवरो बहारना कोई उपसर्गथी डगता नथी
शांतिने चूकता नथी. जेम सोनुं अग्निमां तपे छतां सौनुं ज रहे छे, तेम संयोग अने
राग–द्धेष वच्चे पण ज्ञानीनुं ज्ञान तो ज्ञान ज रहे छे. आवा ज्ञानतत्त्वनी अनुभूति
धर्मीने सदाय वर्ते छे, ने ते ज मोक्षनुं साधन छे.
आस्रवो (पुण्य–पाप) ते कांई आस्रवोने जाणता नथी; आस्रवोथी जुदुं ज्ञान ज
आस्रवोने आस्रवरूपे जाणे छे, जो आस्रवने ज्ञाननुं कार्य माने तो ते जीव ज्ञानने अने
आस्रवोने एक मान्या, ते अज्ञानभावे रागादि कार्यनो कर्ता थईने आस्रवने करे छे.
धर्मी जीव तो पोताने रागादि आस्रवोथी तद्न जुदा एवा ज्ञानस्वभावरूपे ज अनुभवे
छे, एटले ते ज्ञानभावे रागादिनो जरापण कर्ता थतो नथी, एटले तेना ज्ञानमां
आस्रवनो त्याग छे; ने संवर–निर्जरारूपे ज्ञान वर्ते छे, ते मोक्षनुं कारण छे.