Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 55

background image
: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : २७ :
आवा ज्ञानरूप थयेला धर्मीने चैतन्यना आनंदनी एवी खुमारी होय छे के,
दुनिया केम राजी थशे ने दुनिया मारा माटे शुं बोलशे–ते जोवा रोकाता नथी; लोकलाज
छोडीने ए तो पोताना चैतन्यनी साधनामां मशगुल छे. चैतन्यना अनुभवथी जे
खुमारी चडी ते कदी ऊतरे नहि.
जेम अंधाराने देखनार पोते अंधारुं नथी, अंधाराने देखनारो अंधाराथी जुदो
छे; तेम रागादि परभावो अंधारा जेवा छे, ते रागने जाणनार पोते राग नथी, रागने
जाणनारो रागथी जुदो छे. आम ज्ञान अने रागनुं जुदापणुं जाणवुं जोईए.
आत्माना चैतन्यभावना वेदनमां सुख छे, रागना वेदनमां दुःख छे. माटे
दुःखरूप एवा जे रागादि आस्रवो, तेनाथी ज्ञान जुंदु छे, ते ज्ञानना वेदनमां आस्रवनो
अभाव छे. आ रीते ज्ञान वडे ज सुखनो अनुभव, अने दुःखनो अभाव थाय छे.
बीजी कोई रीते सुखनी प्राप्ति ने दुःखथी छूटकारो न थाय.
राग, पछी भले ते शुभ हो, ते दुःखनुं ज कारण छे, तो तेना वडे सुखनी प्राप्ति
केम थाय? रागनो जेमां अभाव छे एवा ज्ञानवडे ज सुखनी प्राप्ति थाय छे.
अरे जीव! शुभरागना साधनथी पार कोई बीजुं तारा आत्महितनुं साधन छे–
तेनो तुं विचार केम नथी करतो? शुभराग तो तें अनादिकाळथी कर्यो; क्षणे अशुभ ने
क्षणे शुभ–एम अनंतवार शुभ–अशुभ करीकरीने स्वर्गमां ने नरकमां अनंतवार गयो,
छतां तारुं हित जराय केम न थयुं? माटे समज के ते शुभाशुभथी जादुं साधन छे, ते
ज्ञानमय छे. ज्ञाननी जात नथी, तेम शुभराग पण ज्ञाननी जात नथी, जुदी जात छे.
आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानो ओळखवो, ने रागथी भिन्न ज्ञानपणे आत्मानुं वेदन
करवुं ते ज हित छे, ते ज मोक्षनुं साधन छे. आ साधनने भूलीने बीजा गमे तेटला
साधन (शुभराग) करे तेनाथी जीवनुं जराय हित न थाय ने तेनां जन्म–मरणनां
दुःखनो अरो न आवे.
करणशक्तिवाळुं तारुं ज्ञान ज तारा हितनुं साधन छे, एनाथी जुदा बीजा कोई
साधनथी जरूर नथी. अरे, तुं पोते ज्ञानस्वरूप, अने तारुं साधन राग होय? तारा
ज्ञाननी अनुभूति रागनी प्रक्रियाथी पार छे, रागनां कारको के विकल्परूप कारको तेमां
नथी. जेम आकाशनी वच्चे अध्धर अमृतनो कुवो होय तेम तारुं चैतन्यगगन,