: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ३९ :
ए रीते, हे भव्य जीवो! जो तमे हित चाहता हो तो अंतरमां समता भाव प्रगट
करो, ममता तथा आठमद छोडीने ज्योतिस्वरूप आत्माने ध्यावो. लोकमां पण जे कोई जीव
परगाम जवा माटे प्रयाण करे छे ते हंमेशां शुभकार्यने माटे शुभ–शकुन विचारीने नीकळे छे.
(प१) माता–पितादिक सर्व कुंटुंब मिलि, नीके सगुन बनावैं,
हलदी धनिया पुंगी अक्षत दूध दहीं फल लावैं,
एक ग्राम जावनके कारन, करें शुभाशुभ सारे,
जब पर गतिको करत पयानो, तब नहि साचो प्यारे.
तेनां माता–पिता वगेरे बधां कुंटुंबीजनो मळीने, उत्तम शुकन–अर्थे हळवद–
धाणा–अक्षत–दूध–दहीं–फळ वगेरे लावीने उत्तम शुकन करे छे. आ रीते एक गामथी
बीजे गाम जवामां पण शुभाशुभनो विचार करे छे, तो हे वहाला मुमुक्षु! ज्यारे
परभवमां प्रयाण करवानो अवसर छे त्यारे शुं तमे तेनो विचार नहीं करो?
(प२) सर्व कुंटुंब जब रोवन लागै, तोहि रुलावें सारे,
ये अपसगुन करें सुन तोकों, तूयों कयों न विचारे.
अब पर गतिको चालन बिरियां, धर्मध्यान उर आनो,
चारों आराधन आराधो, मोह–तेनो दुःख हानो.
हे जीव! सांभळ! तारा मरण टाणे बधा कुटुंबीजनो रोवा लागे छे, ने तने पण
रोवडावीने, परलोक–गमन टाणे तने अपशकन करे छे. एनो विचार तुं केम नथी
करतो? माटे परगतिमां जवाना टाणे तमें अंतरमां धर्मध्यानने धारण करो, आनंदथी
चारो आराधनाने आराधो, अने मोहनो दुःखने नष्ट करो.
(प३) होय निःशल्य तजो सब दुविधा, आतम–राम सु ध्यावो,
अब पर–गतिको करहु पयानो; परम तत्त्व उर लावो.
मोह–जालको काटो प्यारे, अपनो रूप विचारो,
मृत्यु–मित्र उपकारी तेरो, यों उर निश्चय धारो.
निःशल्य थईने बधा दुर्विकल्पोने छोडी दो, ने आतमरामने उत्तमप्रकारे ध्यावो.
हवे उत्तम–गति तरफ प्रयाण करो अने परम–तत्त्वमां उपयोगने लगावो. वहाला
मुमुक्षु! हवे मोहजाळने कट करो ने पोतानुं स्वरूप चिंतवो. मृत्यु ए कोई भय वस्तु
नथी, पण मृत्यु तो तारो उपकारी मित्र छे–एम अंतरमां निश्चय करीने, निर्भयपणे
अखंड आराधनाने उत्साहथी आराधो.