Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : जेठ : २४९८
(प४) ‘मृत्यु–महोत्सव पाठ’ को पढें–सुने बुधिवान,
सरधा धर नित सुख लहे, ‘सूरचन्द’ शिव–स्थान.
पंच उभय नव एक शुभ, संवत सो सुखदाय,
अश्चिन श्यामा सप्तमी, कह्यो पाठ मन लाय.
श्री सूरचंदजी कवि कहे छे के जे–बुद्धिमान जीवो आ मृत्यु–महोत्सव पाठ वांचशे.
सांभळशे ने श्रद्धा करशे ते हंमेशां सुखी थशे अने स्वर्गमोक्षने पामशे. सं. १९पप ना
भादरवा वद सातमना शुभदिने आ समाधि–महोत्सव काव्यनी रचना करी..... ते
भव्यजीवोने आराधनानो उल्लास आपो.
(‘मृत्यु महोत्सव’ अथवा समाधिमरणनी भावनानुं आ आंखु काव्य
अर्थसहित, तथा तेना भावने लगतुं मुनिवरोनुं सुंदर भाववाही रंगीन चित्र, अने
बीजा केटलाक वैराग्यप्रेरक सुंदर लेखोनुं संकलन ‘मृत्यु–महोत्सव’ नामना पुस्तकमां
छपायेला छे. वैराग्यनी द्रढता माटे, आराधना उल्लास माटे तेम ज समाधिमरणनी
भावना माटे आ पुस्तक दरेक जिज्ञासुने उपयोगी छे. किंमत एक रूपियो. पोस्टेज फी.
–ब्र. हरिलाल जैन, सोनगढ)
थाक ऊतरे ने शीतळता था
परम शीतल है चैतन्यदेव! तने नमुं छुं.
गूफावासी अंत, कदी गुफानी बहार नीकळता न होय,
चैतन्यतत्त्व सिवाय बीजा कोई साथे जगतमां संबंध जराय न होय,
ए संतोनुं जीवन केवुं सुखी शीतळ होय! एवुं ज जीवन जीवतां
आवडे त्यारे ज जीव सम्यक्त्व पामे.
परभाव; –गमे तेवो ऊंची जातनो होय–तोपण तेमां एकलो
थाक छे. पाछळथी थाक लागे छे–एम नहि, पण ते वखते ज ते थाक
छे, ते परभाव जीवने कदी तृप्ति के संतोष आपी शके नहि. माटे
परभाव सिवायनुं बीजुं कांईक तारा स्वतत्त्वमां छे तेने हे जीव! तुं
शोध.... अनुभव.
निस्तृहपणे आत्महित साधे ते ज धन्य छे.