Atmadharma magazine - Ank 344
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९८ आत्मधर्म : ४१ :
श्रुतनुं रहस्य प्रगट
करीने श्रुतपंचमी उजवो

श्रुतपंचमीना प्रवचनमां संतोना महिमापूर्वक गुरुदेवे कह्युं के आत्मामांथी
सम्यग्ज्ञान प्रगट करवुं ते साची श्रुतपंचमी छे.
मुनिओए जे उपदेश आप्यो छे तेमां खरेखर तो पोताने अनुभूतिमां जे शुद्ध
आत्मा आनंदमय प्रसिद्ध थयो छे तेनो ज पोकार छे के आवो आनंदमय शुद्ध आत्मा
अमारा अनुभवमां आव्यो छे. पोताने जे अत्यंत प्रिय चीज छे ते जगतने पण बतावीने
कहे छेके तमे पण आवा आत्माने ज प्रिय करो..... भावश्रुतवडे तेना आनंदनुं वेदन करो.
सम्यग्द्रष्टि खरो मोक्षार्थी थयोछे, केमके मोक्षनो जे महा आनंद तेना स्वादनो
नमूनो तेणे चाखी लीधो छे; अहो, अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप मारो आत्मा! एम
आनंदना समुद्रनुं भान थतां, ते पूर्णानंदने अभिलाषी थयो, एटले मोक्षार्थी थयो.
ते मोक्षार्थी जीव पोताना ज्ञानने अत्यंत उदार करीने एटले के रागादि समस्त
परभावोथी जुदुं करीने एम अनुभवे छे के एक शुद्ध परम चैतन्यभाव जहुं छुं, ने
एनाथी भिन्न कोई परभावो हुं नथी. भावश्रुतने अंतर्मुख करीने आवुं अनुभवज्ञान
प्रगट्युं ते खरी श्रुतपंचमी छे...... श्रुतनो सार तेना अनुभवज्ञानमां आवी गयो.
आग्रामां तत्त्वज्ञाननो महान प्रचार
हमणां आग्रामां २० दिवस तत्त्वज्ञाननी महान शिबिरनुं आयोजन थयुं, तेमां
२२ केन्द्रोमां बाळकोनी पाठशाळा चालती हती, ने हजार उपरांत बाळको तेमां धर्म
शिक्षणनो लाभ लेता हता. धार्मिक शिक्षण ने प्रवचनना कार्यक्रमो सवारथी रात सुधी
हता. ते उपरांत विद्धानोना भाषणोमां पण हजारो तत्त्वप्रेमी लाभ लेता हता. जयपुरना
शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकानी अध्यक्षतामां शिबिरनुं उद्घाटन सागरना शेठ श्री
भगवानदासजीए कर्युं हतुं. आ शिक्षणशिबिरथी आग्रा शहेरमां सारी जागृती आवी हती.
“श्वेतांबर जैन” साप्ताहिक पत्रमां पण ‘आगरामें वीतरागविज्ञानकी धूम एवा हेडींग
साथे समाचारो प्रगट थाय हता. आगराना पदमचंदजी जैन वगेरेने शिक्षण शिबिर माटे
सारी जागृती आवी छे, ने ठेरठेर जैन पाठशाळाओ चालु करवानुं