
अग्रभागमां मोक्षशीला छे, तेना पर अविनश्वर, अविचल, अनंतसिंद्ध बिराजमान छे. आपणे
ज्यां रहीए छीए ते मध्यम लोक छे. हे श्रावकी! आ मध्यलोकनी नीचे अधोलोक छे. आ उर्ध्व,
मध्य अने अधो नामना त्रण लोकमां जीव बधेय भरेला छे, अने सुख–दुःखनो अनुभव करे छे.
उर्ध्वलोकवासी देवोने आदि लईने नीचेना जे जीव छे तेओ बधा जन्म–मरणनां दुःख अनुभवे
छे. परंतु सांभळो, सिद्धोने जन्म–मरणनुं दुःख नथी.
अनेक प्रकारनी पर्यायो कर्मना कारणे प्राप्त थाय छे. आ जीव क््यारेक दरिद्र कहेवाय छे, क््यारेक
धनिक कहेवाय छे, क््यारेक स्त्री थईने अवतरे छे, क््यारेक पुरुष थईने. आ प्रकारे कर्मना
संयोगथी ए अनेक प्रकारे दुःखोनो अनुभव करे छे.
तेनो मार्ग बतावो.
पोतानी सामे जिनेन्द्र भगवाननी ने सिद्धोनी प्रतिकृति राखीने उपासना करवी ते भेदभक्ति छे.
पोताना आत्मामां ज तेमने बिराजमान करीने उपासना करवी ते अभेदभक्ति छे. विशेष शुं?
पहेलांं तो भेदभक्तिना ज अभ्यासनी जरूर छे. भेदभक्ति बराबर अभ्यास थया पछी
अभेदभक्तिनो अभ्यास करे तो कर्मनो नाश थई शके छे. कर्मनो नाश करवा माटे
अभेदभक्तिपूर्वक आराधनानी ज परम आवश्यकता छे.