Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 45

background image
:८: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
तेवी रीते त्रण वातोनी वच्चे आ बधा लोक छे. जे उपर देखाय छे ते सुरलोक छे. ते सुरलोकना
अग्रभागमां मोक्षशीला छे, तेना पर अविनश्वर, अविचल, अनंतसिंद्ध बिराजमान छे. आपणे
ज्यां रहीए छीए ते मध्यम लोक छे. हे श्रावकी! आ मध्यलोकनी नीचे अधोलोक छे. आ उर्ध्व,
मध्य अने अधो नामना त्रण लोकमां जीव बधेय भरेला छे, अने सुख–दुःखनो अनुभव करे छे.
उर्ध्वलोकवासी देवोने आदि लईने नीचेना जे जीव छे तेओ बधा जन्म–मरणनां दुःख अनुभवे
छे. परंतु सांभळो, सिद्धोने जन्म–मरणनुं दुःख नथी.
क््यारेक मनुष्य देव थाय छे, देव मनुष्य थाय छे, अने क््यारेक ने नारक थाय छे, तेम ज
हाथी, पशु, फणि ने वृक्षादि अनेक योनिओमां जईने कर्मवश भ्रमण करे छे. ए रीते जीवोने
अनेक प्रकारनी पर्यायो कर्मना कारणे प्राप्त थाय छे. आ जीव क््यारेक दरिद्र कहेवाय छे, क््यारेक
धनिक कहेवाय छे, क््यारेक स्त्री थईने अवतरे छे, क््यारेक पुरुष थईने. आ प्रकारे कर्मना
संयोगथी ए अनेक प्रकारे दुःखोनो अनुभव करे छे.
एवामां विद्यामणि हाथ जोडीने उपस्थित थई अने पूछवा लागी के स्वामी! आपे कह्युं के
संसार दुःखमय छे, सिद्धलोकमां सुख छे ते अविनाशी सुख प्राप्त करवानो शो उपाय छे? अमोने
तेनो मार्ग बतावो.
सम्राटे कह्युं देवी! कर्मजाळनो जे नाश करे छे तेओ बधा सिद्धोनी पेठे ज सुखी थाय छे.
वळी तेणे प्रश्र पूछयो के स्वामी! आपे ए तो ठीक कह्युं परंतु ए बतावो के कर्मने नाश
करवानो उपाय शुं छे? एनो मर्म पण अमने जरा समजावी देजो.
देवी! सांभळो, जिनेन्द्रभक्ति, सिद्धभक्ति आदि सत्क्रियाओथी ते कर्मनो नाश करवामां
आवे छे. विचार करवाथी ते जिनेन्द्रभक्ति तथा सिद्धभक्ति भेद अने अभेदरूपे बे प्रकारनी छे.
पोतानी सामे जिनेन्द्र भगवाननी ने सिद्धोनी प्रतिकृति राखीने उपासना करवी ते भेदभक्ति छे.
पोताना आत्मामां ज तेमने बिराजमान करीने उपासना करवी ते अभेदभक्ति छे. विशेष शुं?
पहेलांं तो भेदभक्तिना ज अभ्यासनी जरूर छे. भेदभक्ति बराबर अभ्यास थया पछी
अभेदभक्तिनो अभ्यास करे तो कर्मनो नाश थई शके छे. कर्मनो नाश करवा माटे
अभेदभक्तिपूर्वक आराधनानी ज परम आवश्यकता छे.