Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :९:
त्यार पछी ते विद्यामणि ऊभी थईने फरी प्रार्थना करवा लागी के स्वामी! आपनी
दयाथी अमने भेदभक्तिना स्वरूपनुं ज्ञान ने अभ्यास छे, परंतु अभेदभक्तिमां चित्त नथी
लागतुं. ते दिव्यभक्ति संबंधी अमने खास करीने समजावी दो.
देवी! जेवी रीते तमे जिनवासमां (जिनमंदिरमां) सामे भगवानने राखीने तेमनी
उपासना करो छो, तेवी रीते तनुवातमां जो पोताना आत्माने राखीने तेमनी उपासना करो तो
ते अभेदभक्ति छे. आ आत्मा हाल शरीरप्रमाणे छे. शरीरनी अंदर रहेवा छतां पण तेनाथी
जुदो छे. पुरुषाकाररूप छे, चिन्मय छे. एने एवो जाणीने देखे तो तेनुं दर्शन थाय छे. एक
स्फटिकनी शुद्ध प्रतिमा जेवी रीते धूळनी राशिमां राखवा छतां देखाय छे तेवी रीते आ देहरूपी–
धूळनी राशिमां आ शुभ्र आत्मा ढंकाएलो छे–एम जाणीने तेने जोवानो जो प्रयत्न करवामां
आवे तो ते अंदर देखाय छे. स्फटिकनी प्रतिमा चर्मचक्षुथी देखी शकाय छे, हाथोथी स्पर्शी शकाय
छे, परंतु आ कोई विलक्षण मूर्ति छे, ते नथी चर्मचक्षुथी देखी शकाती के नथी हाथथी स्पर्शी
शकाती. तेने तो आकाशना रूपमां बनावेली स्फटिकनी मूर्ति समजो. तेने ज्ञानचक्षुथी ज जोवी
पडशे.
संसारनो लोभ घणो खराब छे. परपदार्थोना मोहे ज आ आत्माने ते अभेदभक्तिथी
च्युत कर्यो छे. तेथी सौथी पहेलांं आशापासने ज छोडो. आशाओने ओछी कर्या पछी
एकांतवासमां जईने आंखो मींचीने तेनुं चिंतन करो, तो ते अवस्थामां ते अत्यंत शुभ्ररूपे
बनीने ज्ञानमां अवतरित थई देखाय छे. तेने जोवानो प्रयत्न करे तोपण ते एक ज दिवसमां
नथी जोई शकातो. अभ्यास करतां करतां क्रमेक्रमे तेनुं दर्शन थाय छे. परंतु ए चोककस छे के
एकाद दिवसमां ते न देखाय तोपण आलस्य कर्या वगर पूरतो प्रयत्न करवो जोईए.
हे सुखकांक्षिणी! आ प्रकारनी अभेदभक्तिथी कर्मोनो नाश थाय छे. मुक्तिनी प्राप्ति थाय
छे. बधा धर्मोमां ते उत्कृष्ट धर्म छे. सज्जन तेनो स्वीकार करे छे. जेनुं होनहार खराब छे एवो
अभव्य तेनो स्वीकार करतो नथी.
विद्यामणि देवी फरी ऊठीने ऊभी थई अने हाथजोडीने अत्यंत भक्तिथी प्रार्थना करवा
लागी के स्वामी! आ अभेद भक्तिनो अभ्यास पुरुषोने ज थाय छे के स्त्रीओने पण थई शके छे
एनुं रहस्य जरा अमने समजावी दो.
देवी! सांभळो, ते भक्ति बे प्रकारनी छे. एक धर्म अने बीजी शुक्ल; जो