:१०: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
के कहेवामां बे प्रकार देखाय छे पण विचार करतां एक ज छे, कारण बंनेना अवलंबनरूपे आत्मा
एक ज छे.
भक्तिनो अभ्यास करती अथवा ध्यान करती वखते जो आत्मप्रकाश अल्प प्रमाणमां
देखाय तो तेने धर्मध्यान समजवुं जोईए, जो विशिष्ट प्रकाश थयो तो तेने शुक्लध्यान
समजवुं जोईए. देवी! एक वर्षाकाळनो ताप छे ने बीजो ग्रीष्म काळनो ताप छे. एटलुं ज
बंनेमां अंतर छे.
जे आ भवमां मुक्ति प्राप्त करवावाळा छे तेमने शुक्लध्याननी प्राद्रि थाय छे; जे क्रमे
पोतानुं कर्मसंतान नाश करीने मुक्ति थशे तेमने धर्मयोगनी प्राद्रि थशे. स्त्रीओने आ जन्ममां ज
मुक्ति प्राप्त नहि थाय, केमके तेमने स्त्रीपर्यायमां शुक्ल ध्याननी प्राप्ति नथी थती; पण तेथी
निराश थवानी जरूर नथी. धर्मयोगने स्त्रीओ पण धारण करी शके छे. तेना पर विश्वास लावो.
देवी! समवसरणमां केटलीये अर्जिकाओ अने संयमी श्राविकाओए श्री भगवान ऋषभदेव
उपदेशथी आ धर्मयोगने प्राप्त कर्यो छे.
आ धर्मयोगथी स्त्रीपर्यायनो नाश थाय छे, निश्चयी देवगतिनी प्राप्ति थाय छे तेम ज क्रमे
मोक्षनी पण प्राप्ति थाय छे. आ जिनेन्द्रनी आज्ञा छे, एना पर निश्चयथी विश्वास लावो.
उपर्युक्त उपदेशथी प्रसन्न थईने विधामणि बेसी गई, ते वखते विनयवती नामनी
राणी ऊठीने ऊभी रही अने हाथ जोडीने प्रार्थना करवा लागी. स्वामी! देव गतिमां जईने जन्म
लेवा माटे कया भावनी जरूर छे अने कया सामेथी भावोथी मनुष्यपणे उत्पन्न थवाय छे? ए
वातो जरा अमने समजावो.
सम्राटे कह्युं के देवी! पुण्यमय भावोथी स्वर्गथी प्राप्ति थाय छे. पाप विचारोथी नरक ते
तिर्यंचगतिनी प्राप्ति थाय छे पुण्य ने पाप बन्ने विचारोथी समताथी मनुष्यगति मळे छे.
एवामां विनयवती फरी हाथ जोडीने कहेवा लागी के पुण्यभाव कया साधनोथी मळे?
अने पापविचारना कारण शुं? ए वातो स्पष्टरूपे समजाववानी कृपा करो.
देवी! सांभळो. दान देवुं, पूजा करवी, व्रतोनुं आचरण करवुं, शास्त्रोनुं