: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :११:
मनन करवुं वगेरे पुण्यप्राप्तिनुं साधन छे. अभिमान, मायाचार, क्रोध, लोभ भोगा शक्ति आदि
बधा पापनां कारण छे. ए प्रकारे कुलजातिनी मर्यादानुं उल्लंघन न करवुं, जीवदया राखी,
तीर्थक्षेत्रनी वंदना करवी आदि पुण्यनुं कारण छे. हिंसा जूठ, चोरी, कुलील अने अतिकांक्षा आदि
वातो थी पापतो बंध थाय छे.
एक वात विचारणीय छे. जे आत्मा पाप अने पुण्यने आधिन थईने क्रिया करे छे, ते
संसारमां परिभ्रमण करे छे. जे पाप–पुण्यने समद्रष्टिथी देखीने पोताना ज आत्मामां स्थिर थाय
छे ते अधिक समय अहीं न रहेतां सिद्धशिला उपर चाल्या जाय छे.
विनयवती वळी हाथ जोडीने प्रार्थना करवा लागी के स्वामी! स्वर्ग सुखनो अनेभव
करवावाळा पुण्यने अने दुर्गतिमां लई जनार पापने समद्रष्टिथी जोवानो उपाय शो? तेने पण
जरा सारी रीते समजावी दो.
देवी! स्वर्गनुं सुख पण नित्य नथी, अने नारकीओनी वेदना पण नित्य नथी. बन्ने
अवस्थाओ बे स्वप्न समान छे. तेने आत्मानुं सत्य स्वरूप मानवुं–एनाथी अधिक बीजो भ्रम
शो छे? जेवी रीते एक मनुष्य वृक्ष उपर चडीने आनंदथी हसे छे ने पाछो नीचे पडे छे तेवी रीते
देव स्वर्गमां दिव्य ईन्द्रिय–सुखने अनुभवी नीचे भूतल पर पडे छे; जेवी रीते कोई बच्चुं कोई
एक खाडामां पडीने रोककळ करतां उपर चडे छे, तेवी रीते नारकी जीव पण नरकनां दुःखोने
अनुभवीने उपर आवे छे.
जन्म–मरण स्वर्गमां पण छे, ने नरकमां पण छे. शरीरभार पण बन्ने जगाए छे.
स्वर्गनो देह चार दिन सुंदर देखाय छे. त्यां चार दिन सुख लागे छे, नरकनुं शरीर दुःखमय
जणाय छे, एटलुं ज अन्तर छे.
देवी! नारकी देह शुं अने देवोनो देह शुं? एक तो लाकडीनो बोजो छे, तो बीजो चंदननी
लाकडीनो बोजो छे. बन्नेमां वजननी द्रष्टिथी कोई तफावत नथी. एटलो ज स्वर्ग अने नरकमां
भेद छे. ज्ञानरूपी शरीरने धारण करी पोद्गलिक शरीरना भारथी रहित थईने पोताना स्वाधीन
रूपमां ठरवुं ते ज मुक्ति छे. एम न करवाथी ऊंच नीच शरीरने आधीन थईने परिभ्रमण
करवाथी पुण्य–पापनो बंध अवश्य थतो रहेशे.
देवी! जुओ, दर्पणपर कीचडनो लेप करो, चाहे चंदननो लेप करो, बन्ने प्रकारथी दर्पणनी
स्वच्छतानो नाश थाय छे, ते प्रतिबिंबने देखाडवाना काममां आवी शकतुं नथी. एवी रीते पुण्य
अने पाप बन्नेना संबंधथी आत्मानी स्वच्छता नाश पामे छे. जेवी रीते दर्पणपर लिप्त चंदन
अने कीचडने घसीने साफ करवाथी दर्पण