Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:१२: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
स्वच्छ थाय छे, तेवी रीते पुण्य अने पापने आत्मयोगरूपी पाणीथी धोईने दूर करवाथी आत्मा
पोताना स्वरूपमां अर्थात् मुक्तिमां लीन थाय छे.
देवी! पाप–पुण्यनो त्याग एकदम नथी थई शकतो. पहेलांं मनुष्ये पापक्रियाओ छोडवी
जोईए अने पुण्यक्रियाओमां पोतानी प्रवृत्ति करवी जोईए. ज्यारे तेनी सिद्धि थई जाय त्यारे
पुण्यक्रियाओनो पण त्याग करी देवो जोईए. जेवी रीते धोबी कपडां साफ करवा माटे पहेलांं तेने
मसालाना पाणीमां पलाळी राखे छे, त्यार पछी निर्मळ पाणीथी धूए छे त्यारे ते वस्त्र निर्मळ
थाय छे. केवळ मसालाना पाणीमां डूबाडी राखवाथी ज ते कपडुं निर्मळ थई शकतुं नथी. एवी
रीते पहेलांं पुण्यवासना द्वारा पापवासनानो नाश करवो जोईए. केवळ एटलाथी ज काम नहि
थाय; परंतु पुण्यवासनाने पण आत्मायोगथी धूए तो ज आत्मा जगत्पूजय बनी शके. अहींयां
वस्त्रना मेलना स्थाने पाप छे. मसालाना स्थाने पुण्य छे, अने स्वच्छ पाणीना स्थाने
आत्मयोग छे. पहेलांं कंईक पुण्य संपादन करवुं उचित छे. आत्मयोगमां जेओ रत छे तेने
पुण्यनी कांई जरूर नथी. तेथी में तमने कह्युं हतुं के पुण्य अने पाप समद्रष्टिथी जुओ. देवी! आ
जिनेन्द्रनुं वाक््य छे, एना पर श्रद्धा राखो.
विनयवती प्रसन्न थई. हवे चंद्रिका नामनी राणी बीजी कोई राणीओनी वती शंका करीने
ऊभी थई अने प्रार्थना करवा लागी के स्वामी! आपे अमने अत्यार सुधी ए उपदेश दीधो के
पुण्य अने पापने समद्रष्टिथी जोईने छोडी देवां जोईए, परंतु एमां केटलुं तथ्य छे ए समजातुं न
हतुं; कारण के जो एम न होय तो आप पुण्यकृत्य केम करी रह्यां छो? जिनेन्द्र भगवाननी पूजा
करवी, मुनिओने आहारदान देवुं, शास्त्रोनो स्वाध्याय अने मनन करवुं, सज्जनोनी रक्षा अने
दुर्जनोने शिक्षा करवी, उपवास करवा आदि बाबतो शुं पुण्यबंधनुं कारण नथी? तेने आप केम
करी रह्या छो? केवळ अमने ज उपदेश देवानो छे शुं?
चंद्रिका देवी! बराबर छे. तेम घणी सूक्ष्मद्रष्टिथी विचार करीने आ प्रश्र कर्यो छे. तमारा
हदयमां जे शंका उपस्थित थई ते साहजिक छे. हवे तमे बराबर सांभळो, हुं तमने समजावीश.–
भरतेश्वरे कह्युं.
देवी! हुं पुण्यक्रियाओने करुं छुं केमके हुं गृहस्थपणे रहुं छुं. ज्यां सुधी हुं गृहस्थपणे रहुं छुं
त्यां सुधी गृहस्थधर्मनी मर्यादाओनुं उल्लंघन करवुं ए धर्म नथी. जेथी षट्कर्मोनुं पालन करवुं
मारा माटे अनिवार्य छे. दिगम्बर दीक्षा धारण कर्या पछी