: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :१३:
पुण्यकमनी अपेक्षा रहेती नथी. पछी पुण्यक्रियाओ एकदम छोडवी जोईए, परंतु राज्यशासन
करता थका पुण्यक्रियाओ छोडी देवी ते राजानुं लक्षण नथी. देवी! मानी ल्यो के हुं कदाचित्
आत्मानुभवी होवाथी पुण्यप्रवृत्ति छोडी दउं, परंतु आ विषयमां लोक मारुं अनुकरण करशे
अर्थात् तेओ पण पुण्यविचारोने छोडी देशे, पण तेमने आत्मयोग तो प्राप्त नथी; अने तेओ
पुण्यक्रियाओने छोडी देशे तो परिणामे तीव्र पापबंध करीने नाहक दुःखी थशे. तेथी पुण्यप्रवृत्तिनो
मार्ग देखाडी रह्यो छुं.
चंद्रिकादेवीए फरी प्रार्थना करी के स्वामी! आपे कह्युं ‘पुण्य–पाप बंने बंधनां कारण छे.
बंने हेय छे.’ हवे कहो छो के ‘बीजाओनुं अहित न थाय एटला माटे पुण्याचरण करी रह्यो छुं,’
हवे आप ज कहो के बीजाओने माटे पण जो मनुष्य हेय कर्या करे तो तेने बंध थशे के निर्जरा
थशे? निर्जरा तो न ज थाय, कर्मबंध ज थशे. तेथी आप एवुं कार्य केम करो छो, ए वात अमने
बराबर समजावो.
भरतेश्वरे कह्युं–देवी! सांभळो. चित्तने पोताना आत्मामां स्थिर करीने बहारनी बधी
क्रियाओ ज्ञानी उदासीन भावे करे छे. तेम करवां छतां पण तेने कोई बंध थतो नथी. आ धर्मनो
प्रभाव छे. तेने जरा बराबर समजो.
जेवी रीते सपत्नीने प्रेम अथवा ईच्छाथी जो पोतानी पासे रहेवानुं कहे तो रहे छे. पण
जो तेने उपेक्षाभावथी कहे तो पोतानी पासे रहेती नथी. एवी रीते जो कर्मने सारुं समजीने
आदरपूर्वक तेनुं स्वागत करे तो जीव ते कर्मपरायण रहे छे, अने तेने सारी रीते कर्मबंधन थाय
छे. पण जो तेने तिरस्कार द्रष्टिथी (हेयबुद्धिथी) जोवामां आवे तो जीव ते कर्मपरायण केम रहे?
कर्म त्यां टकी शकतां ज नथी. तेथी कह्युं छे के–ज्ञानीने भोग करवा छतां पण कर्मबंध नथी,
सागारधर्ममां रहेवा छतां पण ते अनगारनी समान रहे छे.
तो पछी आपने उपवासादि जंजालमां पडवानी शी जरूर छे? केमके भोगववा छतां पण
आपने बंध थतो ज नथी, तो पछी आरामथी महेलमां शा माटे नथी रहेता? चंद्रावती देवीए
हसीने कह्युं.
देवी! घडीक वारमां भूली गई एम लागे छे. में कह्युं हतुं के भोगमां अति आसक्ति
करवी ते कर्मबंधनुं कारण छे; भोगनो त्याग करवा माटे आ उपवासादिक हुं करुुं छुं. बीजुं कांई
कारण नथी.