
जराक समजावी द्यो.
जेनामां शक्ति नथी तेओ ते जाणकारोनी वृत्ति जोईने प्रसन्न थती रहे. परमात्मध्यान ज
मुक्तिनुं साक्षात् कारण छे. ए वातनी श्रद्धा करीने बधा लोक पुण्याचारनुं पालन करे. तमे पण
करो. चोक्कस भविष्यमां तमोने मुक्तिनो मार्ग देखाशे.
साधन छे एम कह्युं छे, परंतु आप कहो छो के आत्मयोग ज मुक्तिनुं साधन छे.–ए
आगमविरोधी उपदेश आपे शा माटे कर्यो?
कोई अंतर नथी. आत्माना स्वरूपने ज रत्नत्रयी कहे छे. दर्शन अने ज्ञान ए आत्माना स्वरूप
छे. दर्शन अने ज्ञानस्वरूपमां स्थिरभावथी रहेवाने चारित्र कहे छे, तेथी ए त्रणे वस्तु आत्माथी
भिन्न नथी. देवी! रत्नत्रय बे प्रकारनां छे आप्त–आगम–शास्त्रोनुं श्रद्धान अने ज्ञान करीने
व्रतादिकमां जोडावुं ते व्यवहाररत्नत्रय छे, गुप्तरूपे आत्मानुं ज श्रद्धान करवुं, जाणवुं तथा लीन
रहेवुं ते निश्चय रत्नत्रय छे. पहेलांं तो व्यवहार रत्नत्रयनो आश्रय करवो जोईए, पछी
निश्चयमां ठरी जवुं जोईए. देवी! ते वखते आत्मानुं संसार संबंधी दुःख नाश पामे छे अने
मुक्तिनी प्राप्ति थाय छे.
पण मोटो आत्मा छे? ए वात तो अमारा समजवामां नथी आवी. आप बराबर समजावो.