
थशे नहि. आ अबळाओनुं नाहक अकल्याण थवुं न जोईए, तेने कोई उपायथी समजाववुं
जोईए.
कहेवुं योग्य नथी. ए वातनी यर्थाथता तमे आगळ जतां बराबर समजशो. हाल तो
श्रीपंचपरमेष्ठीओनी उपासना करो. भगवान अथवा पंचपरमेष्ठी आत्माथी पण अधिक छे.
परंतु आत्माथी जुदा स्थापीने तेनी पूजा करवामां आवे तो ते उत्कृष्ट नथी. भगवान पोताना
आत्मामां छे, एम समजीने उपासना करवी ए उत्कृष्ट धर्म छे. देवी! भगवानने बहार स्थापीने
उपासना करशो तो तेथी पुण्यबंध थशे, तेथी स्वर्गादिक सुखनी प्राप्ति थशे. जो भगवानने
पोताना आत्मामां स्थापीने उपासना करशो तो सर्वकर्मोनो नाश थई मोक्षसुखनी प्राप्ति थशे.
पोताना निर्मळ आत्मामां भगवानने स्थापीने जो उपासना करवामां आवे तो ते अभेदभक्ति
छे, निश्चयभक्ति छे, अथवा तेने ज परमार्थ भक्ति कही शकाय छे. देवी! तमने हवे आ जणाई
गयुं हशे के व्यवहारमार्गने ज भेदमार्ग कहे छे. निश्चयमार्गने अभेदमार्ग कहे छे.
अभेदमार्गनी प्राप्ति करो के जेथी तमने मोक्षसुखनी प्राप्ति थाय.
अने आकार पण स्त्रीत्वथी युक्त छे. आपे ए कह्युं हतुं के ते आत्मा पुरुषाकार छे, तो एवी
अवस्थामां अमने स्त्रीओने ते पुरुषाकारी आत्मानुं ध्यान केवी रीते थई शके? आ जरा
समजाववानी कृपा करो.