:२२: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
एकत्वनो अनुभव
अरे, एकत्वस्वरूप आत्मानी अनुभूतिमां ‘हुं ज्ञान छुं’ एटलो विकल्प पण ज्यां नथी.
पालवतो, त्यां बाह्यलक्षी बीजा रागनी तो शी वात? गुणभेदना एक सूक्ष्म विकल्पनी पण
पक्कड रहे त्यां सुधी एकत्वस्वरूप शुद्धाआत्मा श्रद्धामां–ज्ञानमां के वेदनमां आवतो नथी.
आत्माना एकत्वमां जे परिण्म्यो ते सर्वे विकल्पथी जुदो थयो. ज्ञान अने विकल्पनी सर्वंथा
भिन्नता तेणे जाणी–अनुभवी.
तत्त्ववेदी धर्मातमा एम अनुभवे छे के सर्वे विभाग वगरनुं एक शुद्ध जीवास्तिकाय ज
अमारुं स्वतत्त्व छे, बीजुं कांई अमारुं नथी.–आवा एकत्वनो अनुभव करनारा तत्त्ववेदी
जीव अत्यंत अल्पकाळमां ज अति अपूर्व सिद्धिने पामे छे.
वन–जंगलमां वीतरागी संतो क्षणे ने पळे आवा अंर्ततत्त्वने निर्विकल्प थईने अनुभवे छे.
अहा, धन्य छे ते अनुभवनी पळ! धर्मी–गृहस्थो पण घरमां क््यारेक आवो निर्विकल्प
अनुभव करे छे.
अहा, आवा पोताना अंर्ततत्त्वनो निर्णय करे तो अंतरमां ऊतरीने अनुभव करवानो
अवसर आवे. स्वद्रव्य केवुं छे तेने ओळखीने ते उपादेय करवा जेवुं छे. उपादेय कई रीते
करवुं?–तेनी सन्मुख थईने अनुभव कर्यो एटले ते उपादेय थयुं; अने तेनाथी विरुद्ध बधा
विभावो हेय थई गया, तेमनुं लक्ष छूटी गयुं.
जे एक सहज ज्ञायकभाव छे ते परमतत्त्व छे, ने बीजा बधा भेद–भंग–रूप व्यवहारभावो ते
अपरमभाव छे. परभावरूप जे शुद्धतत्त्व तेना अनुभवथी प्रचुर आनंदसहित आत्मानो
निजवैभव प्रगटे छे, ते मोक्षमार्ग छे. माटे परमभाव ज अनुभव करवा योग्य छे.
मोक्षमार्गना शुद्धभावमां व्यवहारना कोई भेद–भंगनुं आलंबन नथी, एक सहज
परमतत्त्वनुं ज आलंबन छे; तेना अनुभवथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे,