: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :२३:
तेना अनुभवथी ज चारित्रदशा केवळज्ञान थायछे.
आवा अभेद परमतत्त्वना अनुभव पहेलांं भेदना विकल्पो आवे छे, शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय
वगेरेना विचारमां साथे विकल्प आवे छे, ते विकल्पोनो खेद छे; तेनी होंश नथी, तेना प्रत्ये
उत्सुकता नथी, शुद्धस्वभाव तरफनी ज होंश ने उत्सुकता छे. अरे, सीधेसीधा
परमस्वभावमां ज पहोंची जवानी भावना छे, तेना ज अनुभवनुं लक्ष छे, पण वच्चे भेद–
विकल्पो आवी जाय छे तेनी भावना नथी.
[अहीं अत्यंत अनुग्रहथी अनुभवनुं प्रोत्साहन आपतां गुरुदेव कहे छे के–]
बापु! आ तो जन्म–मरणनां दुःखडा टाळवानी परम आनंदने अनुभववानी अपूर्व वात छे.
आत्माना परमस्वभावनी आवी वात कोईक ज वार महा भाग्ये सांभळवा मळे छे. माटे
अंतरमां ऊंडा ऊतरीने आ समजवा जेवुं छे.
अहो, वीतरागी संतोए दिल खोलीने, अंर्तस्वभावनां रहस्यो खोलीने मुमुक्षु जीवोने
देखाडया छे. तारी चीज तने बतावी छे. आवी चीज तारा अंतरमां छे; तुं पोते आवो
परमभाव छो. अंतर्मुख थईने आवा परमतत्त्वने अनुभवमां ले, तो तारा मोक्षनो मार्ग
खुली जशे.
अहो, आ तो अपूर्व सिद्धिनो पंथ छे. तत्त्वरसिक थईने तारा आवा उत्तम तत्त्वने तुं
निर्णयमां ले. आवा परम तत्त्व सिवाय बीजुं कांई मारुं नथी–एम अनुभव करतां अपूर्व
सिद्धि पमाय छे. वारंवार घोलन करीने तारा आवा तत्त्वनुं सेवन कर, तेनो अनुभव कर.
कोई कहे –आमां तो बधुं ऊडी जाय छे!
तो कहे छे के–बीजुं बधुं भले ऊडी जाय, पण तारुं एक शुद्ध स्वतत्त्व तो बाकी रहे छे ने!
तेने तुं लक्षमां ले. तारा ते स्वतत्त्वमां अनंतचतुष्टय भरेलां छे; अनंत चैतन्यरसनां
आनंदथी ते भरपूर छे. तेनो आश्रय करतां मोक्षमार्ग प्रगटे छे. पछी बीजानुं तारे शुं काम
छे? तुं तारा एकत्वमां रहे ने? तेमां तारुं बधुंय समाय छे.