:२४: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
अत्यारे ज सम्यक्त्वने ग्रहण कर
[तत्गृहाण अद्य सम्यक्त्वं तत्लाभे काल एष ते]
ऋषभदेव भगवानना जीवने सम्यक्त्वप्राप्तिनुं अद्भुत रोमांचकारी वर्णन)
भोगभूमिमां आर्य–दंपति तरीके उपजेला वज्रजंघ अने श्रीमति एकवार कल्पवृक्षनी
त्यारबाद सुखपूर्वक बिराजता ते बंने मुनिवरो प्रत्ये विनयपुर्वक वज्रजंघे आ
ए प्रमाणे वज्रजंघनो सवाल पूरो थतां जमोटा मुनिराज तेने आ प्रमाणे उत्तर देवा
लाग्या: हे आर्य! तुं मने ए स्वयंबुद्धमंत्रीनो जीव जाण के जेना वडे तुं