Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :२५:
महाबलना भवमां पवित्र जैनधर्मनो प्रतिबोध पाम्यो हतो. ते भवमां तारा मरण बाद में
जिनदीक्षा धारण करी हती अने संन्यासपूर्वक शरीर छोडीने सौधर्मस्वर्गनो देव थयो हतो;
त्यारबाद आ पृथ्वीलोकमां विदेहक्षेत्रनी पुंडरीकिणी नगरीमां प्रीतिकर नामनो राजपुत्र
थयो छुं अने आ (बीजा मुनि) प्रीतिदेव मारा नानाभाई छे. अमे बंने भाईओए
स्वयंप्रभजिनेन्द्रनी समीप दीक्षा लईने पवित्रतपोबळथी अवधिज्ञान तथा
आकाशगामिनी चारणऋद्धि प्राप्त करी छे. हे आर्य! अमे बंनेए अवधिज्ञानरूपी नेत्रथी
जाण्युं के तमे अहीं भोगभूमिमां उत्पन्न थया छो; पूर्व भवे आप अमारा परममित्र हता
तेथी आपने प्रतिबोधवा माटे अमे अहीं आव्या छीए.
श्री मुनिराज परम करुणाथी कहे छे –हे भव्य! तुं पवित्र सम्यग्दर्शन वगर केवळ
पात्रदाननी विशेषताथी ज अहीं उत्पन्न थयो छे–ए वात निश्चय समज. महाबलना
भवमां पण तुं मारी पासेथी तत्त्वज्ञान पाम्यो हतो, परंतु ते वखते भोगोनी आंकाक्षाने
वश तुं दर्शनशुद्धि पामी शक््यो न
हतो. हवे अमे बंने, सर्वश्रैष्ठ
तथा स्वर्ग–मोक्षना सुखनुं मुख्य
साधन एवुं सम्यग्दर्शन देवानी
ईच्छाथी अहीं आव्या छीए.... माटे
हे आर्य! आजे ज तुं सम्यग्दर्शन
ग्रहण कर!
अहा, मुनिराजना श्रीमुखेथी
परम अनुग्रहभर्या आ वचनो सांभळतां वज्रजंघनो आत्मा अतिशय प्रसन्न थयो.
प्रीतिकर मुनिराज परम अनुग्रहपूर्वक वज्रजंघना आत्माने सम्यग्दर्शन अंगीकार
करावतां कहे छे के हे आर्य! तुं हमणां ज सम्यग्दर्शन ग्रहण कर.... आ तारो सम्यक्त्वना
लाभनो काळ छे. “–
तद्गृहाणाद्य सम्यक्त्वं तल्लामें काल एष ते”
देशनालब्धि वगेरे बहिरंगकारण अने करणलब्धिरूप अंतरंगकारणवडे भव्यजीव
दर्शनविशुद्धि पामे छे. जेम सूर्यनो उदय थतां रात्रीसंबंधी अंधकार दूर थई जाय