Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 30 of 45

background image
: अषाढ: २४९८ आत्मधर्म :२७:
ते अल्पकाळमां ज मोक्ष सुधीना सुखने पामी जाय छे. देखो, जे पुरुष एक मुहृर्तने माटे पण
सम्यग्दर्शन प्राप्त करी ल्ये छे ते आ मोटी संसाररूपी वेलने कापीने अत्यंत छोटी करी नांखे छे.
जेना हृदयमां सम्यग्दर्शन छे ते जीव उत्तम देव तथा उत्तम मनुष्यपर्यायमां ज उत्पन्न थाय छे,
ए सिवाय नरक–तिर्यंचना दुर्जन्म तेने कदी थता नथी. अहो, आ सम्यग्दर्शन संबंभमां अधिक
शुं कहेवुं? एनी तो एटली ज प्रशंसा बस छे के जीवने सम्यग्दर्शन प्रप्त थतां अनंत संसारनो
पण अंत आवी जाय छे, ने ते मोक्षसुखने पामे छे.
आ प्रमाणे सम्यग्दर्शननो परम महिमा समजावीने श्री मुनिराज कहे छे के हे आर्य! तुं
मारा वचनोथी जिनेश्वरदेवनी आज्ञाने प्रमाणभूत करीने, अनन्यशरणरूप थईने (एटले के तेनुं
एकनुं ज शरण लईने) सम्यग्दर्शननो स्वीकार कर. जेम शरीरना हाथ–पग जगेरे अंगोमां
मस्तक प्रधान छे, अने मुखमां नेत्र मुख्य छे, तेम मोक्षना समस्त अंगोमां गणधरादि
आप्तपुरुष सम्यग्दर्शनने ज प्रधान अंग जाणे छे. हे आर्य! लोकमूढता, गुरुमूढता अने
देवमूढतानो परित्याग करीने तुं, मिथ्याद्रष्टिओ जेने नथी पामी शकता एवी सम्यग्दर्शननी
उज्जवळताने धारण कर. सम्यग्दर्शनरूपी तलवार द्वारा संसाररूपी लताने तुं छेदी नांख. तुं जरूर
निकट भव्य छे अने भविष्यकाळमां तीर्थंकर थनार छे. हे आर्य! अरिहंतदेवना वचनअनुसार में
आ सम्यग्दर्शननी देशना करी छे, ते श्रेयनी प्राप्ति माटे तारे अवश्य ग्रहण करवायोग्य छे. ए
प्रमाणे आर्य–वज्रजंघने प्रतिबोध्या बाद ते मुनिराज आर्या–श्रसमतिने संबोधीने आ प्रमाणे
कहेवा लाग्या :
हे अंबा! हे माता! तुं पण संसारसमुद्रथी पार थवा माटे नोैकासमान एवा आ
सम्यग्दर्शनने अति शीघ्रपणे ग्रहण कर. आ स्त्रीपर्यायमां वृथा खेदखीन्न शा माटे थाय छे? हे
माता! तुं विलंब वगर सम्यग्दर्शनने धारण कर. सम्यग्दर्शन थया पछी जीवने स्त्रीपर्यायमां
अवतार थतो नथी, तेम ज नीचेनी छ नरकोमां वैमानीकथी हलका देवोमां, के बीजी कोई नीच
पर्यायोमां ते उत्पन्न थतो नथी. अज्ञानजन्य आ निंद्य स्त्रीपर्यायने धिक्कार छे के जेमां निर्ग्रंथ
मुनिधर्मनुं पालन थई शकतुं नथी. हे माता! हवे तुं निर्दोष सम्यग्दर्शननी आराधना कर, अने
तेनी आराधना वडे आ स्त्री पर्यायनो छेद करीने क्रमेक्रमे मोक्ष सुधीना परम स्थानोने प्राप्त कर.
तमे बंने थोडाक उत्तम भवोने धारण करीने ध्यानरूपी अग्निद्वारा समस्त