Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:२८: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
कर्मोने भस्म करीने परम सिद्धपद पामशो.
–आ प्रमाणे प्रीतिकरआचार्यना वचनोने प्रमाण करीने आर्यवज्रजंघे पोतानी स्त्रीनी
साथेसाथे प्रसन्नचित्त थईने सम्यग्दर्शन धारण कर्युं. ते वज्रजंघनो जीव पोतानी प्रियानी साथे
सम्यग्दर्शन पामीने अतिशय संतुष्ठ थयो; बराबर छे,–अपूर्व वस्तुनो लाभ प्राणीओने महान
संतोष उपजावे ज छे. जेम कोई राजकुमार सूत्रमां परोवेली मनोहर माळा प्राप्त करीने पोतानी
राजलक्ष्मीना युवराजपद पर स्थित थाय छे तेम ते वज्रजंघनो जीव पण जैनसिद्धांतरूपी सूत्रमां
परोवेली मनोहर सम्यग्दर्शनरूपी माळा पामीने मोक्षरूपी राजसम्पदाना युवराजपद पर स्थापित
थयो; तेमज विशुद्ध पुरुषपर्याय पामीने मोक्ष प्राप्त करवानी ईच्छा करती थकी सती आर्या पण
सम्यक्त्वनी प्राप्तिथी अत्यंत संतुष्ठ थई. पहेलांं कदी पण जेनी प्राप्ति थई न हती एवा
सम्यग्दर्शनरूपी रसायणने आस्वादीने (चैतन्यना अतीनि़्द्रय आनंदने अनुभवीने) ते बंने
दंपती कर्म नष्ट करनार एवा जैनधर्ममां अतिशय द्रढता पाम्या.
हुं ज्ञानस्वभाव छुं–एवो जे खरो निर्णय छे तेनी संघि
ज्ञानस्वभाव साथे छे, विकल्प साथे तेनी संधि नथी.
ज्ञान अने विकल्प बंने निर्णयकाळमां होवा छतां; तेमांथी ज्ञान–
स्वभाव साथे संधिनुं काम ज्ञाने कर्युं छे, विकल्पे नहि.
ज्ञानस्वभाव साथे संधि करीने, तेना लक्षे उपडेली ज्ञानधारा
ज्ञानना अनुभव सुधी पहोंची जशे.
ज्ञानस्वभाव साथे संधि करवानी विकल्पमां ताकात नथी. ज्ञाने
स्वभावनो ‘टच’ कर्यो त्यारे साचो निर्णय थयो.
ज्ञानस्वभावना निर्णयमां, विकल्पथी ज्ञान अधिक थयेलुं छे,
ज्ञान अने विकल्प वच्चे वीजळी पडी चुकी छे, बंने वच्चे तिराड
पडी गई छे, ते सांध हवे भेगी न थाय.
–आवा आत्मनिर्णयना बळे सम्यक्त्व पमाय छे.