Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:३०: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
ज्ञानबीज ऊगी ते अल्पकाळमां केवळज्ञानने साधशे ज. साधकने आवी ज्ञानधारा प्रगटी ते
अपूर्व छे, आनंददायक छे, विकल्पनी धाराथी तद्न जुदी छे.
श्रवणनुं फळ वेदन. ‘जेवुं वेदन तेवुं श्रवण’
अनंता जीवो एवा छे के जेओ हजी सुधी एकेन्द्रियपणामांथी नीकळीने पंचेन्द्रिय कदी
थया ज नथी, एटले जेने हजी सुधी कान मळ्‌या नथी; छतां कहे छे के सर्वे जीवोए रागनी कथा
अनंतवार सांभळी छे. शब्दो भले न सांभळ्‌या, छतां ते जीवोए पण रागनी कथा सांभळी छे
एम कह्युं, केमके रागमां एकत्व परिणमन करी रह्या छे तेथी ते जीवो रागनी कथा ज निरंतर
सांभळी रह्या छे. तेनी सामे शुद्धात्मानी कथानी वात लईए तो, जेणे शुद्धात्मामां एकत्व
परिणमन कर्युं छे तेणे ज शुद्धात्मानी कथा खरेखर सांभळी छे. वेदन वगरना श्रवणने खरेखर
श्रवण कहेता नथी. श्रवणनुं जे वाच्य, तेनुं जे वेदन करे छे ते ज खरूं भावश्रवण छे. तेथी कहे छे
के जेणे एकवार पण शुद्धात्मानी कथा सांभळी (एटले के भावश्रवण कर्युं) ते जरूर अल्पकाळमां
मुक्ति पामे छे.
आ श्रवणनी माफक गुरुदेव एक बीजो न्याय पण कहे छे: सामान्यपणे दरेक जीव
संसारनी चारे गतिमां अनंतवार उपज्यो–एम कहेवामां आवे छे; पण गणितना न्यायथी जोतां
बधा जीवो चारे गतिमां, अनंतवार तो शुं पण एकवार पण उपजी शके नहि. अगाउ गुरुदेवे
देवगतिनो दाखलो आपीने आ वात समजावी हती; हालमां चतुरीन्द्रियना भवनो दाखलो
आपीने ते वात समजावी. बंनेमां न्याय सरखो ज छे. तेथी अहीं आपणे देवगतिनो दाखलो
लईशुं.
देवगतिनुं आयुष्य दशहजार वर्ष (ओछामां ओछुं) छे.
देवगतिमां जीवोनी संख्या एक साथे असंख्यात होय छे, अनंता जीवो तेमां होता नथी.
जीवोनी संख्या अनंतानंत छे; एटली अनंत छे भूतकाळना समयो करतां अनंतगुणी छे.
हवे दर दशहजार वर्षे असंख्यात जीवो देवगतिमां ऊपजे, पछी बीजा असंख्यात जीवो
उपजे, ए प्रमाणेे दर दशहजार वर्षे असंख्यात जीवोना क्रमथी गणीए तोपण