Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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:३४: आत्मधर्म : अषाढ: २४९८
मुमुक्षु जीवनां परिणाम उज्वळ होय छे, हरेक प्रसंगे ते वैराग्यमां झंपलावे छे. मुमुक्षुने
जातिस्मरण वगेरे पण वैराग्यनुं ज कारण थाय, रागनुं कारण न थाय. पूर्वना भवो ने
पूर्वना भावो याद आवतां एम थाय के अहा, आवा भवो ने आपवा भावो हुं करी
आव्यो. हवे तो आ संसार प्रत्ये वैराग्य ज करवा जेवो छे. आम ते आत्मा साथे संधि
करीने वैराग्य वधारे छे.
जुओने, सीताजीए अग्निपरीक्षा पछी वैराग्यथी संसार छोडी दीधो ने अर्जिका थई गया.
रामचंद्रजी जेवा महान धर्मात्मा ने मोक्षगामीपुरुष, तेमने पण लक्ष्मणजीना वियोगनो केवो
प्रसंग आव्यो! छ मास सुधी लक्ष्मणजीना देहने साथे लईने फर्या. छतां अंतरना श्रद्धा–
ज्ञानमां ते पण छूटयु नथी, ने संयोगमां एकक्षण पण तन्मय थया नथी. गमे तेवा
प्रसंगमां पण ज्ञानीनी आत्मपरिणति संसारथी विरकत ज छे.
जिज्ञासु जीवने साचा देव–गुरु–धर्म प्रत्ये घणो आदर, भक्ति ने अर्पणता होय छे. आत्मा
गुणनो ज पिंड छे, तेथी तेने गुण ज गमे छे; एवा गुणीजनो प्रत्ये घणो आदरभाव आवे
छे. लोको पण अवगुणने निदे छे ने गुणनी प्रशंसा करे छे. वीतरागना गुणनो आदर करीने
मुमुक्षु पोते पोतामां तेवा गुण प्रगटाववा मांगे छे.
–आम विविध प्रकारे संतोना वचनमांथी आत्महितनी प्रेरणा लईने आत्माना भाव सारा
राखवा. सारा भावनुं सारूं फळ आवे ज छे. खरेखर, ज्ञानीसंतोनी वाणी मुमुक्षुजीवने
अपूर्व आत्मशांति आपनारी छे.
सर्वज्ञ परमात्माए अने वीतरागी मुनि भगवंतोए कहेलुं सत् अत्यारे
प्रसिद्धिमां आवी रह्युं छे. अहो! सत्नुं लक्ष करनारा जीवो महा भाग्यशाळी छे.
सत्नुं लक्ष करीने तेनो पक्ष करनार जीवो, –प्राण जाय तोपण सत्ना पक्षने
छोडता नथी. प्राण जाय तो भले जाय. मारा सत्स्वरूपना लक्षनो पक्ष हुं कदी
छोडुं नहि. सत्ना साधकने जगतनी प्रतिकूळता डगावी शकती नथी.