पूर्वना भावो याद आवतां एम थाय के अहा, आवा भवो ने आपवा भावो हुं करी
आव्यो. हवे तो आ संसार प्रत्ये वैराग्य ज करवा जेवो छे. आम ते आत्मा साथे संधि
करीने वैराग्य वधारे छे.
प्रसंग आव्यो! छ मास सुधी लक्ष्मणजीना देहने साथे लईने फर्या. छतां अंतरना श्रद्धा–
ज्ञानमां ते पण छूटयु नथी, ने संयोगमां एकक्षण पण तन्मय थया नथी. गमे तेवा
प्रसंगमां पण ज्ञानीनी आत्मपरिणति संसारथी विरकत ज छे.
छे. लोको पण अवगुणने निदे छे ने गुणनी प्रशंसा करे छे. वीतरागना गुणनो आदर करीने
मुमुक्षु पोते पोतामां तेवा गुण प्रगटाववा मांगे छे.
राखवा. सारा भावनुं सारूं फळ आवे ज छे. खरेखर, ज्ञानीसंतोनी वाणी मुमुक्षुजीवने
अपूर्व आत्मशांति आपनारी छे.
प्रसिद्धिमां आवी रह्युं छे. अहो! सत्नुं लक्ष करनारा जीवो महा भाग्यशाळी छे.
सत्नुं लक्ष करीने तेनो पक्ष करनार जीवो, –प्राण जाय तोपण सत्ना पक्षने
छोडता नथी. प्राण जाय तो भले जाय. मारा सत्स्वरूपना लक्षनो पक्ष हुं कदी
छोडुं नहि. सत्ना साधकने जगतनी प्रतिकूळता डगावी शकती नथी.