Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९८ : आत्मधर्म : ११ :
ज्ञानसत्तानो स्वीकार
प्रवचनो बंध हता त्यारे पण गुरुदेवने ज्ञानरसनुं
घोलन तो अंदर चाल्या ज करतुं, कोई कोईवार ते व्यक्त
करता; एक वखत स्वसंवेदन–ज्ञानना अद्भुत महिमा संबंधी
केटलुंक घोलन तेओश्रीए व्यक्त करेलुं, ते उपरथी अहीं थोडुंक
लख्युं छे. (सं.)
स्वसत्तापूर्वक परने जाणनारुं ज्ञान ते प्रमाण छे. एटले जाणनारो जाणनारना
पोताना ज्ञानपूर्वक परने साचुं जाणे छे.
जाणनारो ज्ञानशक्तिवाळो पदार्थ ते कर्ता,
ज्ञानवडे जाणे छे ते ज्ञान तेनुं साधन,
जाणवारूप परिणति करे छे ते तेनी क्रिया,
आ रीते कर्ता–करण–क्रिया ए त्रणे आत्मामां समाय छे. हवे जाणनार पोते कर्ता
जेमां ज्ञानस्वरूप पोतानी स्वसत्तानो स्वीकार मुख्य होय ते ज साचुं ज्ञान छे.
दीवाना प्रकाशमां पदाथोृ प्रत्यक्ष जणाय छे ने दीवानो प्रकाश नथी जणातोएम
केम बने? तेम पदार्थो जणाय छे–पण जेमां पदार्थो जणाय छे ते ज्ञान नथी जणातुं–
एम केम बने? अहो, चैतन्यस्पर्शी न्यायोथी संतोए तो ज्ञाननुं स्वसंवेदन