Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 53

background image
: १२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९८ :
कराव्युं छे. अरे जीव! सर्वत्र पहेलांं तुं तारा ज्ञानने जो. स्वोन्मुखी थईने ज्ञानस्वरूप
पोताने प्रत्यक्ष जाण्या वगर एक पण पदार्थनुं तारुं ज्ञान साचुं नहि थाय. स्वना
ज्ञानसहित परनुं ज्ञान ते ज साचुं ज्ञान छे.
ज्ञानसिवायना पदार्थो कांई पदार्थोने प्रकाशता नथी.
ज्ञान ज स्वसत्ताथी ते पदार्थोने प्रकाशे छे–जाणे छे.
पदार्थोने जाणनारुं ते ज्ञान पोते स्वयंप्रकाशी–शक्तिवाळुं होवाथी पोते पोताने
पण जाणे छे.
ज्ञान सिवायना जे पदार्थो छे तेओ पोते कांई पोताने प्रकाशता नथी, तेने तो
बीजो प्रकाशे छे एटले के ज्ञान तेने प्रकाशे छे.
पण ज्ञान तो पोते पोताने पण प्रकाशे छे, पोते पोताने प्रकाशवामां
(जाणवामां) तेने बीजानी जरूर पडती नथी.
जेम शब्दो वगर पण (आ घट, आ पट एवा शब्द वगर पण) ते पदार्थोनुं
(घट–पटनुं) ज्ञान थाय छे; तेम शब्दो के संबंधी विकल्पो वगर एकला ज्ञानवडे
ज्ञानस्वरूप आत्मानुं ज्ञान थाय छे.
अहा, ज्ञाननो स्वभाव तो जुओ! राग वगर ज पोते पोताना स्वरूपे प्रकाशी
ज रह्युं छे. राग अने विकल्पोथी पर रहीने, एटली वीतरागी आनंदरसमां
तरबोळ रहीने स्व–परने प्रकाश्या करे एवुं अचिंत्य मारुं ज्ञानस्वरूप छे.–आवा
ज्ञानस्वरूपनुं संतोए स्वसवेदन कराव्युं छे. जय हो वीतरागी संतोनो!
संसारना घोर विकल्पोथी छूटवा शुं करवुं?
‘हुं शांत ज्ञान छुं’ एवी भावना भाववी. शांत–
ज्ञानमां संसारना विकल्पोनो प्रवेश नथी. तेथी तेनी भावना
करनार जीव घोर संसार–विकल्पथी छूटे छे ने मुक्तिनी परम
शांतिने पोतामां वेदे छे.