Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९८ : आत्मधर्म : १३ :
सम्यग्द्रष्टि जीवनी दशा अने तेनो महिमा
सम्यग्द्रष्टिए जगतनुं उत्कृष्ट कार्य करी लीधुं तेथी ते धन्य छे....धन्य छे....
दोषरहित गुणसहित सुधी जे सम्यक् दर्श सजे है,
चरितमोहवश लेश न संजम पै सुरनाथ जजे है,
गृही, पैं गृहमें न रचें, जयों जलतें भिन्न कलम है,
नगरनारीको प्यार यथा कादवमें हेम अमल है. १प.
छहढाळनी आ गाथामां सम्यग्दर्शनधारक जीवनी अंतरनी दशा ओळखावीने
तेनो महिमा कर्यो छे. अहो, सम्यग्दर्शन एटले शुं? लोकोने तेनी किंमत नथी; तेने
जराय संयम न होय तोपण ते प्रशंसनीय छे, देवो पण तेनो महिमा करे छे. जेणे
दोषरहित अने गुणसहित सम्यग्दर्शन धारण कर्युं छे,–सम्यग्दर्शन वडे आत्माने
शणगार्यो छे, ते उत्तमबुद्धिवान भले गृहवासमां रहेल होय छतां गृहमां ते जराय रत
नथी; जेम जळमां रहेलुं कमळ जळथी जुदुं छे, जेम नगरनारीनो प्रेम ते साचो प्रेम
नथी अने जेम कादवमां रहेलुं सोनुं कटातुं नथी, तेम गृह वासमां रहेला सम्यग्द्रष्टिनुं
अलित्पापणुं जाणवुं. जुओ, त्रण तो द्रष्टांत आपीने सम्यग्द्रष्टिनो महिमा समजाग्यो.
सम्यग्द्रष्टिने ‘सुधी’ कह्या छे. सु–धी एटले सम्यक् छे जेनी बुद्धि एवा साची
बुद्धिवंत; चैतन्यने साधवा माटे साची बुद्धिवाळा सम्यग्द्रष्टि ते सुधी छे; बाकी तो बधा
कुबुद्धि छे. सुबुद्धि–सम्यग्द्रष्टि विषयोथी पार आत्माने अनुभवनारा, तेने भले
संयमदशा जराय न होय, हजी विषयासक्ति होय, गृहवासमां होय, छतां सुरनाथ
ईद्रादि देवो पण तेने प्रशंसे छे. आवो सम्यग्दर्शननो महिमा छे.
आत्मामां जेणे बुद्धि जोडी ते ज साचा बुद्धिमान छे; बीजुं जाणपणुं तेने भले
ओछुं होय, ते सम्यग्द्रष्टिजीवो आठ गुणना आभूषणोथी शोभे छे. मुनि दशानी
भावना होवा छतां हजी चारित्रमोह वर्ते छे. तेथी संयम लई शकता नथी, कर्मने कारणे
नहि पण पोते चारित्रमोहने वश वर्ते छे ते कारणे, एटले पोताना तेटला दोषने कारणे
ते हजी आरंभ–परिग्रहमां रह्या छे, विषय–व्यापार छोडीने हजी मुनि थया नथी, संयम
के व्रत लेशमात्र नथी, वेपार–धंधा–स्त्री वगेरे होय छे, छतां ते सम्यग्द्रष्टि तेमां राचता
नथी, तेनुं सम्यग्दर्शन बगडतुं नथी, ते तो जळ–