Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९८ : आत्मधर्म : १५ :
एक ज घरमां बे पुत्रो होय, बंने सरखा भोगोपभोग भोगवता होय, पण ते
वखते एकने अनंतो बंध थाय छे, बीजाने अल्प! तेनुं कारण? अंदरनी द्रष्टिना फेरे
मोटो फेर पडे छे.
अरे, सम्यग्द्रष्टि तो परमात्मानो पुत्र थई गयो, परमात्माना खोळे बेठो, हवे
तेने केवळज्ञान लेवानी तैयारी छे; मोक्षमहेलनी सीडी उपर चडवानुं तेणे शरू करी दीधुं
छे. (
मोक्षमहलकी परथम सीढी... एम १७ मा पदमां कह्युं छे.)
अहो, आवा पवित्र सम्यग्दर्शनने बहुमानथी धारण करो. जरापण काळ नकामो
गुमाव्यो विना, प्रमाद छोडीने, अंतरमां शुद्धात्मानो अनुभव करीने सम्यग्दर्शनने
धारण करो.
सम्यग्द्रष्टिने जरापण संयम के व्रत न होवा छतां द्रष्टि अपेक्षाए तो ते आखा
लोकलोकथी उदास थई गयो छे. देवो तेनो आदर करे छे के–
वाह! धन्य तमारो अवतार, ने धन्य तमारी आराधना!
भवनो कर्यो अभाव, एवो धन्य तमारो अवतार!
सम्यग्दर्शनवडे तमारो मानवजन्म तमे सफळ कर्यो!
तमे जिनेश्वरना पुत्र थया, तमे मोक्षना साधक थया.
ईन्द्र पोते सम्यग्द्रष्टि छे, अवधिज्ञानी छे, सम्यकत्वनो महिमा पोते अंदर
अनुभव्यो छे एटले असंयमी मनुष्यना के तिर्यंचना पण सम्यग्दर्शननी ते प्रशंसा करे
छे. भले वस्त्र होय, परिग्रह होय, तेथी कांई सम्यग्दर्शनरत्ननी किंमत घटी न जाय.
चींथरे वीटेलुं रत्न होय तेनी किंमत कांई घटी न जाय, तेम गृहस्थनुं सम्यग्दर्शनरूपी
रत्न असंयमरूपी मेला चींथरे वींटेलुं होय तेथी कांई तेनी किंमत घटी न जाय.
सम्यग्दर्शनने लीधे ते गृहस्थ पण मोक्षने पंथी छे.
सम्यग्द्रष्टि आत्माना आनंदमां रहेनार छे; ज्यां आत्माना आनंदनो स्वाद
चाख्यो त्यां जगतना विषयोनो प्रेम तेने ऊडी गयो छे. एनी दशा कोई परम गंभीर
छे, ते बहारथी ओळखाय तेवी नथी. एकलो चिंदानंदस्वभाव अनुभवीने जेणे भवनो
अभाव कर्यो छे ते सम्यग्दर्शननो अचिंत्य महिमा छे; अनादिना दुःखनो नाश करीने
अपूर्व मोक्षसुखने ते देनार छे; अनंतकाळमां जे नहोतुं कर्युं ते तेणे कर्युं. आवा
सम्यग्दर्शननुं स्वरूप ने तेनो महिमा तो गंभीर छे; कांई देवोद्धारा पूजाने लीधे तेनो
महिमा नथी, तेनो महिमा तो अंदर पोताना आत्मानी अनुभूतिथी छे. ए
अनुभूतिनो महिमा तो वचनातीत छे.