Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९८ :
जेने रागमां एकत्व छे एवा मिथ्याद्रष्टि–महाव्रती करतां तो रागथी भिन्न
चैतन्यने अनुभवनार सम्यग्द्रष्टि अव्रती पण पूजय छे–महिमावंत छे–प्रशंसनीय छे.
अहो! तमे आत्मानां काम कर्यां, आत्मानी अनुभूतिवडे तमे भगवानना मार्गमां
आव्या;–एम ईन्द्रने पण पोताना साधर्मी तरीके तेना प्रत्ये प्रेम आवे छे. आवा
मनुष्यदेहमा पंचमकाळनी प्रतिकूळता वच्चे पण तमे आत्माने साध्यो....तमने धन्य छे–
एम ‘सुरनाथ जजे हैं’ एटले के सम्यकत्वनुं बहुमान करे छे, अनुमोदन करे छे, प्रशंसा
करे छे. श्री कुंदकुंदस्वामी जेवा वीतरागी संत पण अष्टप्राभृतमां कहे छे के–
ते धन्य छे, कृतकृत्य छे, शूर–वीर ने पंडित छे,
सम्यक्त्व–सिद्धिकर अहो! स्वप्नेय नहि दुषित छे.
सम्यग्द्रष्टि चांडाळदेहमां रहेलो होय तोपण देव जेवो छे एम समन्तभद्रस्वामी
रत्नकरंडश्रावकाचारमां कहे छे–
सम्यग्दर्शनसंपन्नम् अपि मार्गतदेहजम्।
देवा देवं विदुर्भस्मगूढांगारान्तरोैजसम् ।। २८ ।।
चांडाळशरीरमां ऊपजयो होय तोपण जे जीव सम्यग्दर्शनसंपन्न छे तेने
गणधरदेव ‘देव कहे छे; भस्मथी ढंकायेल तेजस्वी अंगारनी जेम ते जीव सम्यकत्ववडे
शोभे छे. सम्यग्द्रष्टि तिर्यंचपर्यायमां होय के स्त्रीपर्यायमां होय तोपण सम्यकत्वना
प्रतापे ते शोभे छे. तिर्यंचपर्याय ने स्त्रीपर्याय लोकमां सामान्यपणे निदनीय छे, पण
जो सम्यग्दर्शनसहित होय तो ते प्रंशंसनीय छे. भगवती–आराधनामां पण सम्यग्द्रष्टि
स्त्रीनी घणी प्रशंसा करी छे. (जुओ गाथा–९९४ थी ९९९)
गृहस्थ सम्यग्द्रष्टि स्त्री होय, पुत्रादिसहित होय तोपण ते गृहमां राचता नथी,
एनी रुचि आत्मामां छे, जराय रुचि बीजामां नथी. पोताथी जेने भिन्न जाण्या तेनो
प्रेम रह्यो नथी. स्वानुभववडे स्व–परनी वहेंचणी करी नांखी छे के ज्ञानानंदस्वरूप ज
हुं, ने शुद्धआत्माना विकल्पथी मांडीने आखी दुनिया ते पर;–आवी द्रष्टिनो अपार
महिमा छे, तेनुं अपार सामर्थ्य छे; तेमां अनंत केवळज्ञानना पुंज आत्मानो ज आदर
छे. अहा, एनी अंदरनी परिणमनधारामां एणे आनंदमय स्वधार जोयुं छे, ते पोताना
आनंदघरमां ज रहेवा ईच्छे छे; रागने परघर माने छे, तेमां जवा ईच्छतो नथी.
चैतन्यधाम–के ज्यां मन चोंटयुं छे त्यांथी खसतुं नथी, ने जयांथी जुदुं पड्युं छे त्यां
जवा मांगतुं नथी.