जाणवामां–श्रद्धवामां–अनुभववामां कुशळ छे....गुणोथी तेओ गंभीर छे, चैतन्यना
अनंतगुणोनो कबाट तेमने ऊघडी गयो छे. आवा मोक्षमार्गी गुणगंभीर आचार्य
भगवान धर्मीजीवो वडे वंघ छे... तेने अमे वंदीए छीए.
करतां ज्ञाननुं बळ अनंतुं खीली जाय छे, ते ज्ञान अतीन्द्रिय थईने स्वभावनुं प्रत्यक्ष
संवेदन करे छे.
नहि घरे कोई सारा मोटा महेमान पधार्या होय त्यारे तेनी सन्मुख थईने आदर
सत्कार करे छे के–आवो पधारो! पण जो महेमाननी सामे जुए नहि ने बीजानी सामे
जुए तो तेमां महेमाननो अनादर थाय छे. जेनो आदर करवो होय तेनी सन्मुख थवुं
जोईए. तेम आ आत्मा ‘हरि’ एटले चिदानंदस्वभावना सामर्थ्य वडे विभावने
हरनारो ‘सिंह,’ सर्व पदार्थमां श्रेष्ठ एवो ‘ईन्द्र,’ आवो मोटो भगवान, तेने आंगणे
पधरावीने सत्कार करवानी आ वात छे. श्रद्धा–ज्ञानने अंर्तस्वभावनी सन्मुख करीने
एटले परसन्मुख भावोथी जुदो पडीने ज आ चैतन्यभगवाननो आदरसत्कार ने
स्वीकार थाय छे.–एकला रागनी के परनी सन्मुख रहीने चैतन्यप्रभुनो आदरस्वीकार
थई शकतो नथी.–संतो तो अंर्तसन्मुख थईने सर्वज्ञपदने आदरी रह्या छे–सिद्धपदने
साधी रह्या छे....चैतन्यघरमां सिद्धनो सत्कार