Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९८ : आत्मधर्म : २५ :
चैतन्यपरिणमनने ओळखीने तेमने नमस्कार करे छे ते साची भक्ति छे. पण परने
नमस्कारमां परलक्ष होवाथी शुभराग छे; ते शुभरागथी चैतन्यपरिणमन जुदुं छे–एम
ते ज्ञानी जाणे छे. अहा, संतो चैतन्यनी आराधनामां शूरा छे. चैतन्यस्वभावना श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धरत्नत्रय, ते रत्नोने साधवामां शूरवीर आचार्य–उपाध्याय–
साधुओ छे.
जगतमां जड रत्नो तो बहु थोडा छे; पण सम्यकत्वादि गुणरत्नो तो एकेक जीव
पासे अनंता छे. ते अंनता चैतन्यरत्नोनो भंडार आत्मा छे, तेनी सन्मुख थतां
पर्यायमां पण सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान सुधीनां रत्नो प्रगटे छे, गुरुदेव प्रमोदथी
कहे छे के हे रतनीया! तुं तो अनंत चैतन्यरत्नने धरनारो रतनीयो छो....तुं दीन नथी.
अनंत मुक्तिरत्नो, आनंदमय रत्नोनो तुं भंडार छो....अरे हीरा! चैतन्यना अनंता
हीरानो तुं भंडार छो, तेनी सन्मुख थतां तने रत्नत्रय अने मोक्ष प्रगटशे.
अहा, आत्मानी एक स्वसंवेदनज्ञानपर्यायमां अनंता सिद्धो, लाखो अरिहंतो,
करोडो साधुओ–ते बधाना स्वरूपनो निर्णय समाई जाय छे, के जेवा ज्ञान–आनंदनुं
वेदन मने मारा स्वसंवेदनमां थयुं तेवा ज ज्ञान–आनंदनुं वेदन ते बधा पंचपरमेष्ठी
भगवंतो करी रह्या छे. जुओ तो खरा, साधकना स्वसंवेदनज्ञाननुं महान सामर्थ्य!
आवी ताकात शुभ विकल्पमां नथी. स्वसंवेदन ज्ञानमां विकल्प समाई शके नहि.
विकल्पथी जुदुं काम करनारुं ज्ञान ज पंचपरमेष्ठी वगेरेना स्वरूपनो साचो महिमा जाणे
छे; अने ते ज्ञान अंतर्मुख थईने पोताना अनंत आनंदमयमां प्रवृत्ति करे छे;
आनंदधाम श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वडे ते मोक्षने साधे छे–एवा संतोना अतीन्द्रिय
आनंदमय चैतन्यपरिणमनने ओळखीने अमे भक्तिथी तेने वंदीए छीए.
अहा, ए संतो तो चैतन्यना निर्विकल्प शांतरसने वेदनारा छे, त्यां तेमने बाह्य
विषयोनी कांक्षा केम होय? तेओ परम निष्कांक्ष छे. अंतरमां परमसुखरसना पानथी जे
स्वयं तृप्त थया ते हवे दुःखजनक विषयोने केम वांछे?–आवा परम निःकांक्षभाववाळा
जैनसाधुओ होय छे. स्वभावनुं परम सुख चाख्या वगर विषयोनी वांछा जीवने
खरेखर माटे नहि. पुण्यरागनी वांछा ते पण विषयोनी ज वांछा छे. राग वगरना
अतीन्द्रिय चैतन्यसुखनो स्वाद चाख्या वगर रागनी ने विषयोनी वांछा मटे नहि, ने
एवा जीवने साधुपणुं क््यांथी होय? साधुओ तो चैतन्यसुखनां अमृतथी तृप्त–तृप्त
होवाने लीधे परम निष्कांक्ष छे. परमात्मतत्त्वनी भावनाथी एटले तेमां