Atmadharma magazine - Ank 346
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९८ :
धर्मीने पोतानो आत्मा शुद्धपणे ज्ञानमां–श्रद्धामां अनुभवमां आव्यो तेनुं आ
वर्णन छे.
‘हुं शुद्ध छुं’–केमके व्यावहारिक भेदरूप नवतत्त्वथी पार एक ज्ञायकस्वभाव
भावरूपे हुं मने अनुभवुं छुं ; मारी आ शुद्ध अनुभूतिमां नवतत्त्वना विकल्पो नथी.
नवतत्त्वना भेदोमां जे अशुद्धतत्त्वो छे ते अद्भुतव्यवहार छे, अने जे संवारादि शुद्ध
तत्त्वो छे ते सद्भुतव्यवहार छे. आवा भेदरूप व्यवहारना अनुभवमां अशुद्धता छे.
नवतत्त्वना भेदथी पार जे एक ज्ञायकभावरूप भाव ते रूपे हुं मने अनुभवुं छुं तेथी हुं
शुद्ध छुं.–आवो अनुभव ते आगमनो सार छे. आवो अनुभव करनारुं ज्ञान आत्माने
आनंदरूप करे छे, ज्ञान पोते अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप थईने परिणमे छे. ज्ञान अने
सुख कांई जुदां नथी. चैतन्यना सर्वगुणोनो रस अनुभूतिमां समाय छे.
ज्ञान–दर्शन उपयोगस्वरूप चैतन्यमय हुं छुं–चैतन्यपणाने हुं कदी छोडतो नथी.
चैतन्यभावपणे ज हुं मने सदा अनुभवुं छुं. चैतन्यभावनी अनुभूतिमां मोहनो
अभाव छे, दुःखनो अभाव छे.
अहा, मारो चैतन्यरस एवो छे के जेमां मोह छे ज नहि. आनंदमय चैतन्य
निजरस, तेमांथी हवे शुद्ध ज्ञानदशानी ज उत्पत्ति सदा थया करशे, मारा निजरसमां
मोहनुं मूळियुं छे ज नहि. माटे हवे फरीने कदी मने मोहनो अंकुर ऊपजवानो नथी.
अरे, मारा चैतन्यरसमां मोह केवो? मारा आत्मामां तो ज्ञाननां अजवाळा प्रगटया छे,
महान ज्ञानप्रकाश खील्यो छे, तेमां हवे मोहनां अंधारा रह्या नथी. सीधुं आत्मसन्मुख
थईने मति–श्रतज्ञाने आत्माने प्रत्यक्ष जाणी लीधो छे, स्वसंवेदनमां ज्ञान अतीन्द्रिय
थयुं छे. ते अतीन्द्रिय ज्ञानप्रकाशनी शी वात! महान ज्ञान उधोत थयो छे.–हुं आवो
निर्मोही थयोछुं. ज्ञाननी अस्ति ने मोहनी नास्ति, एवी पोतानी स्वरूपसंपदा जोईने
मारो आत्मा प्रसन्न थयो छे, तृप्त थयो छे. महान शांतरसना समुद्रमां हुं मग्न थयो छुं.
–आवी शुद्ध आत्मअनुभूति मने थई छे.
आवो महान ज्ञानप्रकाश प्रगट्यो, महान आत्मपरमेश्वररूपे में मने अनुभव्यो.
हवे मारा चैतन्यनी महत्ताने कोई हीणी करी शके नहि, स्वानुभवमां प्रगटेलो जे मारो
महान ज्ञानप्रकाश, ते हवे जगतमां कोईथी हणाय नहि. अहा, मारा चैतन्यनो कोई
परम अद्भूत अचिंत्य चमत्कार छे. आवी परम अद्भूत संपदावाळुं मारुं चैतन्य
स्वरूप में अनुभव्युं छे, हवे मने जगतना कोई पदार्थमां एकत्वबुद्धिरूप मोह केम
थाय? कदी न थाय.