स्वभावनी भावनावडे पर्यायमां केवळज्ञानादि अनंत चतुष्टयरूप कार्य प्रगटी जशे.
सर्वपरभावनुं प्रत्याख्यान कर्युं तेने हवे राग अने अल्पज्ञता रहेशे नहि, तेने तो सहज
स्वभावनी भावनावडे केवळज्ञानादि प्रगटशे. सादि–अनंतकाळ माटे तेने परभावनुं प्रत्याख्यान
थई गयुं. निश्चयथी मारो सहज ज्ञानस्वभाव समस्त परभावना पच्चखाणस्वरूप ज छे, तेनी
सन्मुख थयो त्यां पर्यायमांथी पण परभावोनुं प्रत्याख्यान थई गयुं.
चैतन्यस्वभावसमुद्रमां वाळ. धर्मी कहे छे के अहा, आवा स्वभावना भरोसे अमारा वहाण आ
भवसमुद्रने तरी जशे. अमारा सहज स्वभावने अमे श्रद्धामां–ज्ञानमां–अनुभवमां लीधो छे,
तेना ज अवलंबने अमे अनंत चतुष्टयरूप थई जशुं ने संसारने तरी जशुं; अधूरीपर्याय के
विकार हवे नहि रहे.
प्रगटी, तेनो भेद धर्मी नथी पाडतो. आवा सहज सत् स्वभावनो स्वीकार ते ज सम्यग्दर्शन छे.
तेना ज्ञानमां संदेह नथी. डामाडोळपणुं नथी. निःशंकपणे अनंत चतुष्टयस्वभावपणे ते पोताने
अंतरमां अवलोके छे. अहा, आवा परमतत्त्वरूपे पोते पोताने देख्यो त्यां हवे बहारनुं बीजुं शुं
जाणवा–देखवानुं रह्युं?–वाह! आजे तो आवा आत्मानी प्रतीतरूप समक्तिनो दिवस छे. आवा
आत्मानी प्रतीत करीने सम्यक्त्व करवा जेवुं छे. अने सम्यक्त्व थई गयुं होय तोपण आवा ज
आत्मानी भावना करवा जेवुं छे; ए ज पर्युषण छे. अनंत आनंदथी ऊछळतुं मारुं तत्व, तेनी
सामे नजर करतां ज आनंद थाय एवुं आ तत्त्व छे. महान अचिंत्य आनंदना निधान जेनी
गंभीरतामां भर्या छे, तेनी सन्मुखतामां कलेश केवो? ने बोजो केवो? चैतन्यनी श्रद्धामां ने
एकाग्रतामां कोई कलेश के बोजो नथी. ऊल्टुं अनंत–