Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म भादरवो : २४९८ :
जेमां भर्या छे एवो अखंड आत्मा हुं छुं–एम अंतर्मुख स्वसंवेदन परिणतिथी जेणे जाणी लीधुं
तेणे जाणवायोग्य बधुं जाणी लीधुं. अहा, आवा तत्त्वनुं जेणे उत्साहथी श्रवण कर्युं तेणे शुं न
सांभळ्‌युं? भाई, तें जगतनी राग–द्वेषनी वात सांभळी, पण तेमां कांई हित न थयुं; हवे आ
केवळज्ञान–आनंदस्वभावथी भरेला आत्मानी वात प्रेमथी सांभळीने तेने लक्षमां ले, तो आखुं
जैनशासन तें सांभळी लीधुं. अहा, चैतन्यराजा जेणे अनुभवमां प्राप्त करी लीधो तेनुं मन हवे
बीजा कया पदार्थमां जशे? आ चैतन्यमहातत्त्व पासे जगतना बधा पदार्थो तूच्छ छे, चैतन्यना
महिमा पासे धर्मात्माने जगतना कोई पण ईन्द्रादिवैभवनो पण महिमा आवतो नथी.
परिणतिए अंतरमां एकाग्र थईने पोताना चैतन्यप्रभु साथे केलि करी, त्यां परम आनंदमय
अभेद अनुभूतिमां रागनुं के अपूर्णतानुं लक्ष न रह्युं, केवळज्ञानादि पर्यायनुं पण लक्ष न रह्युं;
आखो अभेद परमात्मा श्रद्धा–ज्ञान अनुभवमां आव्यो, त्यां ते आत्मानी पर्याय पोते ज
जैनधर्म छे; तेणे समस्त जैनशासनने अनुभवी लीधुं छे. ते आत्मा पोते धर्मनुं कल्पवृक्ष थईने
पोताने सम्यक्त्वथी मांडीने सिद्धपद सुधीनां फळ आपे छे.
समस्त मुनिजनोना हृदयकमळनो हंस एवो जे आ शाश्वत केवळज्ञाननी मूर्तिरूप,
सकळविमळ द्रष्टिवंत, शाश्वत आनंदरूप, सहज परम चैतन्यशक्तिमय परमात्मा छे, ते जयवंत
छे.–एम धर्मी जीव पोताना अंतरमां चैतन्यतत्त्वने देखे छे.
आवो परमात्म–हंस धर्मीजीवोना हृदयमां जयवंत छे..... ‘जयवंत छे’ एटले के अमारा
श्रद्धा–ज्ञानमां ते साक्षात् हाजर वर्ते छे. धर्मी जाणे छे के आहो! अनंतचतुष्टयरूपी मोतीना चारा
चरनारो चैतन्यहंसलो अमारा हृदयसरोवरमां (एटले के अमारी अनुभूतिमां) बिराजमान छे.
हंसने केली करवानुं स्थान अमारुं चैतन्य–सरोवर छे. चैतन्यहंसलो रागना चारा न चरे, रागना
मेला खाबोचियामां हंसला न रहे, ए तो स्वच्छ चैतन्यमय आनंदसरोवरमां ज केलि करे.
रागमां केलि करनारो हुं नहिं, हुं तो स्वानुभूतिना आनंदमा केलि करनारो छुं.–आवी अनुभूति
थतां धर्मीने मोक्षना मंगल घंट वाग्या. (साडा आठनो टकोरो वागतां गुरुदेवे कह्युं:) अहा!
विजय डंको वाग्यो..... डंकानी चोट पुर्ण तत्त्वनी प्रतीतना पडकार करतो धर्मी जाणे छे के –अमे
तो अमारा पूर्ण आत्मानी सेवा करनारा हंस छीए; विकाररूपी झेरनां प्याला अमे न पीए.
अमे तो चैतन्यसरोवरना अमृत पीनार छीए....शरीर छतां अशरीरी भावने अनुभवनारा
छीए....आनंदना अमृत पीनारा छीए.