Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४९८ : आत्मधर्म : ७ :
हंसला तो दूध अने पाणीमांथी चांचवडे दूधने खेंची ल्ये, तेम धर्मी चैतन्य–हंसलो, ते
भेदज्ञानरूपी अतीन्द्रिय चांचवडे विकारने जुदो करीने शुद्धचैतन्यतत्त्वनो स्वीकार करी ल्ये छे के
अमे तो आवा पूर्णानंदी परमात्मतत्त्व छीए. अमारा ज्ञानमां–श्रद्धामां–अनुभवमां आवुं
परमतत्त्व ज जयवंतपणे बिराजे छे, विकारभावो तो क्षयवतं छे–जयवंत नथी. अमारी पर्याय
अंतरमां वळी तेमां विकारनी हयाती केवी? एमां तो अमारुं सहज उत्कृष्ट परिपूर्ण एक
चैतन्यतत्त्व ज विद्यमानपणे जयवंत वर्ते छे.
अहो जीवो! आवा परमतत्त्वनी आराधनानो आ उत्तम अवसर छे.
* भगवानी भक्ति *
बरफ तो ठंडो.... पण ते जेमां राख्यो होय ते वासण पण ठरीने
ठंडुं थई जाय.... तेम हे प्रभु! आप तो चैतन्यना परमशांतरसमां ठरी
गया छो, ने आप जेमां रहो ते देह पण जाणे शांतरसनो पिंडलो होय–
एवो थई गयो छे.–आपनो देह पण जाणे जगतना शांतरसना परमाणुं
मांथी बन्यो होय! अमे भक्तामरस्तोत्रमां कह्युं छे.
वळी कहे छे के हे नाथ! हुं अल्पशक्तिवाळो (मतिश्रुतज्ञानवाळो)
नानो होवा छतां आप जेवा महान केवळज्ञानीनी स्तुति करवा उद्यत
थयो छुं. –आपनी सर्वज्ञता प्रत्ये मने परम प्रेम छे. अल्पज्ञ होवा छतां
सर्वज्ञनी स्तुति केम थई शके? तो कहे छे के–जेम मृगली पोताना
बच्चांना परमप्रेमने लीधे तेनी रक्षा माटे सिंहनी पण सामे थाय छे....
तेम अल्पज्ञान होवा छतां हे नाथ! सर्वज्ञ परमपदनी अत्यंत प्रीतिने
लीधे, रागनो संबंध तोडीने ज्ञानस्वभावना स्वसंवेदनना बळथी हुं
आपनी स्तुति करतो करतो सर्वज्ञपदने साधुं छुं. भले नानो, छतां
सर्वज्ञपदना खोळे बेठो छुं, सर्वज्ञनो नंदन अने सर्वज्ञनो वारसदार थयो
छुं–एम धर्मी निःशंकपणे सर्वज्ञपदने साधे छे.