Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४९८ : आत्मधर्म : ११ :
अमारा चैतन्यना आनंदमां ज रमवा मांगीए छीए......माटे हे माता! रजा आपो! त्यारे माता
वगेरे पण वैराग्यथी कहे छे के धन्य बेटा! तुं जे मार्गे जाय छे....ते मार्ग प्रशंसनीय छे, अमारे
पण ते ज मार्गे आववानुं छे.
वाह रे वाह! जुओ तो खरा धर्मीना अंतरनी दशा! अरेरे, आ चैतन्यना सहज सुखने
चाख्या पछी आ घोर संसारदुःखने हवे कोण ईच्छे? स्वभावनी शांतिनी ठंडकने अनुभव्या पछी
परभावरूप अग्निने कोण चाहे? अरे जीवो! आत्माना आवा सुखनी प्रतीत करो..... उल्लासथी
आवा अतीन्द्रिय चैतन्यसुखनो स्वीकार करो. आवा मोक्षसुखनी श्रद्धा करशे तेनो बेडो पार थई
जशे.
आत्माना अनुभवमां थतुं आ चैतन्यसुख अचिंत्य छे,–जेमां कोई राग–द्वेषरूप द्वंद्व नथी,
कलेश नथी, बहारनो कोई उपद्रव नथी; आवुं वीतरागी निरुपद्रव सुख उपमा वगरनुं छे.
चैतन्यसुखने बीजा कोनी उपमा आपवी?–जे सुखरूपे आत्मा पोते थयो तेने बीजो कोण उपद्रव
करी शके? अहा, शरीरमां वींछी करडे के वाघ खाई जाय तोपण चैतन्यना जे सुखमां कांई उपद्रव
न थाय, बाधा न आवे, ते सुखनी शी वात? सम्यग्द्रष्टि आठ वर्षनी बाळा होय तेने पण
आवा चैतन्यसुखना वेदनपूर्वक तेनी धून चडी जाय छे...ते मोटी थाय, लग्न वगेरे थाय, छतां
चैतन्यनुं भान अने चैतन्यसुखनी धारा तेने छूटती नथी. वाह बेन! धन्य तारी दशा! सिद्ध
जेवुं सुख तें तारामां चाखी लीधुं. आत्मानो स्वभाव आवा अनुपम सुखमय छे, ने तेनी
अनुभूति थतां पर्याय पण आवा अनुपम सुखमय थई गई छे. आवा सुख माटे अंतर्मुख
थवानुं बतावे ते ज समक्ति–भाषा छे; बहारमां क््यांय सुख बतावे के बहिर्मुख कोई भावमां
सुख कहे तो ते मिथ्या–भाषा छे.
शरीरथी भिन्न चैतन्यना आश्रयथी तो अशरीरी सिद्धपद थाय छे; ने परद्रव्यना
आग्रहथी तो विग्रह (राग–द्वेष अने शरीरने विग्रह कहेवाय छे ते) उत्पन्न थाय छे. अमारुं
चित्त चैतन्यमां लाग्युं, अमे सुखनुं वीतरगी अमृत पीधुं, ते सुख पासे शुभरागनी वृत्तिओ पण
दुःख अने झेररूप लागे छे, तेमां अमारी परिणति कदी तन्मय शुभरागनी वृत्तिओ पण दुःख
अने झेररूप लागे छे, तेमां अमारी परिणति कदी तन्मय थती नथी. चैतन्यसुखमां जे परिणति
तन्मय थई ते परिणति हवे दुःखमां केम तन्मय थाय? अहो जीवो! सुखना महा समुद्र एवा
आत्मानी भावना करो....एना अतीन्द्रियसुखनो स्वाद स्वानुभूतिमां ल्यो अमने मोक्षसुखनो
तमारामां साक्षात्कार थशे.
[भाद्र सुद ८: नियमसार कळश १३०ना प्रवचनमांथी]