Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४९८ : आत्मधर्म : १३ :
संतोनी साथे मोक्षमां जईए छीए
[अहो, सन्तो केवा वहालथी शिष्यजनोने पोतानी साथे मोक्षमां लई जाय छे! ए वात
नियमसार कलश १३३ उपरना प्रवचनमां गुरुदेवे बतावी..... ते प्रवचन आपे वांच्युं; हवे ए
भावभीनां प्रचवन उपरथी बनावेलुं काव्य वांचतां पण आपने आनंद थशे. –ब्र. ह. जैन)
(सहज गुणआगरो..... ए राग)
आचार्यदेव कहे छे के–
हे सखा! चालने..... मारी साथ मोक्षमां,
छोड परभावने....झुूल आनंदमां.....
निज साथ मोक्षमां लई जवा भव्यने,
श्री मुनिराज संबोधता व्हालथी..... हे सखा!
सांभळी बुद्धिने वाळीने अंतरे,
मग्न था प्रेमथी सुखना सागरे;
निज स्व–रूपने एकने ग्रह तुं,
ए ज आगम तणा मर्मनो सार छे..... हे सखा!
सूज्ञ पुरुष तो सूणी आ शिखने,
हर्षथी उल्लसी छोडे पर भावने;
परमानंद–भरपूर निज पद ग्रही,
शुद्ध स्वरूपमां वेगथी ते वळे...... हे सखा!
अमे जशुं मोक्षमां, केम तने छोडशुं?
आवजे मोक्षमां तुंय अम साथमां.....
भव्य! निज पदने साधजे भावथी,
शिख आ संतनी शीघ्र तुं मानजे...... हे सखा!
तीर्थपति मोक्षमां जाय छे जे भवे,
गणपति पण जरूर जाय छे ते भवे;
शिष्य ए संतना रत्नत्रय साधीने......
संतनी साथमां मोक्षमां जाय छे...... हे सखा!