Atmadharma magazine - Ank 347
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म भादरवो : २४९८ :
जीवने सदाय पर्युषण ज छे. दश दिवसमां तो धर्मनी विशेष
आराधनानी भावना करे छे.
आवी भावना साथे दशलक्षणी पर्युषण पर्व हमणां आपणे
सौए आनंदथी ऊजव्या. गुरुदेवे परम महिमापूर्वक आत्मअनुभूतिनुं
स्वरूप बतावीने धर्मनी उत्तम आराधनानी धोधमार वृष्टि करी....
धर्मात्माना हृदयमां धर्मना अंकुर पण ऊग्या....अहा, धन्य आवा
पर्युषण! पर्युषणना पहेला प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं–अहो! आ तो
धर्मनी आराधनाना दिवसो छे....आत्मानो अनुभव करीने सम्यक्त्व
थवानो आ दिवस छे....ते सम्यक्त्व थयुं होय तेने आत्मानी विशेष
भावना करीने शुद्धता वधारवानो दिवस छे.
अहो जीवो! चैतन्य–परमवीतरागी तत्त्व, तेनी अंतर्मुख
भावना वडे परम क्षमावृत्ति धारण करो. क्रोधादिभावो वगरनी
महापवित्र चेतना....तेने एवी उज्वळपणे प्रगट करो के जगतमां क््यांय
कोई प्रत्ये खूणेखांचरे पण वेरवृत्ति न रहे, ऊंडे ऊंडे पण क्रोधादिना
संस्कार न रही जाय, ने शांत–क्षमारसनुं मीठुं झरणुं आत्मामां वहेतुं
रहे. धन्य ते मुनिभगवंतो! जेमने प्राण हरनार प्रत्ये पण क्रोधवृत्ति
जागती नथी....उत्तमक्षमानी परमशीतळ गुफामांथी जेओ कदी बहार
नीकळता नथी. हुं पण एवा मुनिवरोनो सेवक छुं....मने आ जगतमां
कोई प्रत्ये वेरभाव नथी....कोई मारो शत्रु नथी, सर्वे जीवो प्रत्ये मने
समता छे. मारी चैतन्यभावनामां क्रोध ज नथी त्यां कोई प्रत्ये वेर
केवुं? धर्मना अंकुरा फूटया....पर्युषणनो अवसर आव्यो....आराधनानी
धन्य पळ आवी....एवा आ समये क्षमानुं अमृत छोडीने क्रोधनुं झेर तो
कोण पीए?
अहा, आवी वीतरागी क्षमानां अमृत पीवानो अवसर श्री
देव–गुरुप्रतापे आव्यो छे...चालो साधर्मीओ! सौ आनंदथी हळीमळीने
आ वीतरागी अमृतरस पीए....अने एकबीजाने पीवडावीए.
–ब्र. ह. जैन