भव रहेता नथी.
करवा माटेनो आ भव छे.
करोतिकिया करतो नथी.)
ज्ञानघरमां रागादि विकारनां कार्य केम थाय?–न ज थाय. ज्ञानघरमां विकार होय नहीं.
माटे ज्ञानी धर्मात्मा रागादि विकारभावनो अकर्ता ज छे; एनुं कार्य तो परम शांत
वीतरागभावरूप छे; तेमां ज व्यापीने तेने ते ग्रहण करे छे.
रागादि परभावो मारी पर्यायमां रहेला नथी; मारी सम्यक्त्वादि पर्यायोमां मारा शुद्ध
आत्मा सिवाय बीजा कोईने हुं ग्रहतो नथी, तेनुं अवलंबन लेतो नथी. मने मारी
सम्यक्त्वपर्यायमां, ज्ञानमां, आनंदमां, क््यांय रागनुं–निमित्तनुं देव–गुरु–शास्त्रनुं
कोईनुं ग्रहण नथी, पण मारा आत्मानुं ज ग्रहण छे, तेने ज हुं ग्रहण करुं छुं.
सम्यक्त्वपर्याय आत्मारूपे थईने ऊपजी छे, रागरूपे थईने नथी ऊपजी.–कर्ता थईने
पोतानी आवी ज्ञानचेतनारूप पर्यायने करे छे–ते ज धर्मीनुं लक्षण छे.
समयसार गा. ७प–७८ मां धर्मात्माना चिह्नरूप
ज्ञानचेतनानुं अद्भूत वर्णन आप वांची रह्या छो
ज्ञानचेतनारूप थयेलो साधक एकला चैतन्यना आनंदने ज भोगवे छे; हजी