अनुभवमां लीधे त्यां तेनी पर्याय शुभाशुभविकल्पोथी जुदी थई गई; ते सम्यग्द्रष्टि
‘भगवान’ थई गयो; भगवाननो वारसो तेणे लीधो.
कारणपरमात्मा छे, तेनी भावनामां रागादि कोई परभावो नथी, ते बधा परभावो
माराथी बाह्य छे. में अंतरमां ‘कारणपरमात्मा’ ने मारा कारण तरीके पकड्यो एटले
पर्यायमां पण सम्यक्त्वादि आनंदमय कार्य वर्ती रह्युं छे. मारा कारण साथे शुद्धकार्यनी
संधि छे, तेमां रागादि बधा भावो मारा स्वरूपथी बहार रही जाय छे.–ते रागादि
भावोने मारा कारणपरमात्मा साथे संधि नथी. जुओ तो खरा! आ धर्मात्मानी
एकत्वभावना! आवो एक आत्मा ज हुं छुं,–एना सिवाय अन्य कोई पण भावोने
धर्मी पोतापणे भावता नथी, जुदा ज जाणे छे. मारो कारणपरमात्मा तो मारा
अतीन्द्रियआनंदनुं कारण थाय छे,–पण मारो कारणपरमात्मा कांई शरीरनुं के भवनुं
कारण थाय तेवो नथी. आवा कारणपरमात्मानी भावनामां परिणमेलो होवाथी
मारामां शरीर के संसार नथी. संसारनुं कारण थाय एवुं कोई लक्षण मारामां छे ज
नहीं, मारामां तो ज्ञानदर्शनलक्षण छे, ज्ञानदर्शनमय चेतना ते मारुं शाश्वत लक्षण छे,
ते आनंदमय छे.
अनुकुळताना संयोगो नंदनवन जेवा लागे छे.–बापु! एमां तो दुःख छे. तारुं
चैतन्यतत्त्व ते संसारनी उत्पत्तिना कारण वगरनुं छे. ज्ञानलक्षणथी आत्माने लक्षित
करतां संसाररूपी नंदनवन सुकाई जशे, अने तेने बदले तारा आत्मामां सम्यक्त्वादि
अनंत गुणना आंनद बगीचा खीली नीकळशे.–आवा परम शांत चैतन्यनी भावनामां
शुभ–अशुभ कोई विकल्पोनो कोलाहल नथी.
छे. मारी परिणतिमां रागनो वास नथी; मारी परिणतिने माटे तो मारो आ आनंदमय
कारणपरमात्मा ज उपादेयपणे बिराजी रह्यो छे.–‘आ रह्यो हाजराहजूर...मारा स्व–