Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : आसो: २४९८
अरे, क््यां चेतनलक्षणवंत भगवान आत्मा!! ने क््यां शुभाशुभविकल्पो!
बंनेने कांई लागतुंवळगतुं नथी. धर्मीजीवे अंतर्मुख थईने भगवान आत्माने ज्यां
अनुभवमां लीधे त्यां तेनी पर्याय शुभाशुभविकल्पोथी जुदी थई गई; ते सम्यग्द्रष्टि
‘भगवान’ थई गयो; भगवाननो वारसो तेणे लीधो.
भाई, एकवार आवा आत्माने निर्णयमां तो ले. आवो निर्णय करतां आत्मा
भवसमुद्रना किनारे आवी गयो, ने मोक्षनगरीनी नजीक पहोंच्यो. मारो आत्मा मारो
कारणपरमात्मा छे, तेनी भावनामां रागादि कोई परभावो नथी, ते बधा परभावो
माराथी बाह्य छे. में अंतरमां ‘कारणपरमात्मा’ ने मारा कारण तरीके पकड्यो एटले
पर्यायमां पण सम्यक्त्वादि आनंदमय कार्य वर्ती रह्युं छे. मारा कारण साथे शुद्धकार्यनी
संधि छे, तेमां रागादि बधा भावो मारा स्वरूपथी बहार रही जाय छे.–ते रागादि
भावोने मारा कारणपरमात्मा साथे संधि नथी. जुओ तो खरा! आ धर्मात्मानी
एकत्वभावना! आवो एक आत्मा ज हुं छुं,–एना सिवाय अन्य कोई पण भावोने
धर्मी पोतापणे भावता नथी, जुदा ज जाणे छे. मारो कारणपरमात्मा तो मारा
अतीन्द्रियआनंदनुं कारण थाय छे,–पण मारो कारणपरमात्मा कांई शरीरनुं के भवनुं
कारण थाय तेवो नथी. आवा कारणपरमात्मानी भावनामां परिणमेलो होवाथी
मारामां शरीर के संसार नथी. संसारनुं कारण थाय एवुं कोई लक्षण मारामां छे ज
नहीं, मारामां तो ज्ञानदर्शनलक्षण छे, ज्ञानदर्शनमय चेतना ते मारुं शाश्वत लक्षण छे,
ते आनंदमय छे.
आ शरीर तो संसाररूपी नंदनवनने सींचवा माटे धोरिया जेवुं छे. भाई,
शरीरना लक्षे तो तारा संसारनुं वन ऊगशे. अज्ञानीने संसारमां शरीरादिनी
अनुकुळताना संयोगो नंदनवन जेवा लागे छे.–बापु! एमां तो दुःख छे. तारुं
चैतन्यतत्त्व ते संसारनी उत्पत्तिना कारण वगरनुं छे. ज्ञानलक्षणथी आत्माने लक्षित
करतां संसाररूपी नंदनवन सुकाई जशे, अने तेने बदले तारा आत्मामां सम्यक्त्वादि
अनंत गुणना आंनद बगीचा खीली नीकळशे.–आवा परम शांत चैतन्यनी भावनामां
शुभ–अशुभ कोई विकल्पोनो कोलाहल नथी.
मारो चेतननाथ एवो नथी के रागने भोगवे; मारो चेतननाथ तो त्रिकाळ
अतीन्द्रिय महा आनंदने भोगवनार छे; ते ज मारी सर्व पर्यायोमां उपादेयपणे वसेलो
छे. मारी परिणतिमां रागनो वास नथी; मारी परिणतिने माटे तो मारो आ आनंदमय
कारणपरमात्मा ज उपादेयपणे बिराजी रह्यो छे.–‘आ रह्यो हाजराहजूर...मारा स्व–