Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४९८ आत्मधर्म : १३ :
संवेदनमां वर्ती रह्यो छे.
अहा, मारो आत्मा... एमांथी तो महा आनंदनो ज फूवारो नीकळे छे...
शुभाशुभविकल्पोनो कोलाहल एमांथी नथी आवतो. संसारनो बधो कोलाहल मारा
तत्त्वथी बहार छे. सहज शुद्ध ज्ञानचेतनारूप मारुं तत्त्व अतीन्द्रियसुखने भोगवनारुं
छे, ते ज मारा श्रद्धा–ज्ञानादि सर्वे पर्यायोमां उपादेय छे. आम स्वतत्त्वने एकने ज
उपादेय करीने तेमां अंतर्मुख एकत्वभावनारूपे परिणमेला मारा आत्मामां आनंदना
सुंदर फूवारा प्रगट्या छे....असख्यप्रदेशे अनंतगुणनो अतीन्द्रिय बगीचो खील्यो छे.
शरीर साथेनी एकत्वबुद्धिथी तो संसारवन फळशे, शरीरमां एकत्वबुद्धिने लीधे
तो चारेकोरथी संसारवननी पुष्टि करनारा शुभाशुभभावोनो धोरियो वहे छे, पण
तेमांथी कांई शांतिनो धोरियो नीकळतो नथी.
शरीरमां एकत्व ए तो संसारवनने पोषवानो धोरियो छे,
चैतन्यमां एकत्वभावना ते मोक्षना बागने पोषवानो फूवारो छे.
भाई, शरीरथी भिन्न तारा आत्माने ज्ञानलक्षणथी लक्षमां लईने, तेनी
एकत्वभावना करतां तारा आत्मामां असंख्यप्रदेशे अतीन्द्रियआनंदना फूवारा
ऊछळशे, ने संसारनुं वन सुकाई जशे, जन्म–मरण मटी जशे. माटे आवा आत्मानी
भावना कर.
क्रिया : १ – २ – ३
प्रश्न :– जेनामां ज्ञान न होय तेने क्रिया होय?
उत्तर :– हा; तेनामां ज्ञानक्रिया न होय पण जडकिया तो होय.
अजीवपदार्थोमां ज्ञान न होवा छतां तेनी अजीवक्रियाने तो ते करे ज
छे. जीव के अजीव दरेक पदार्थ पोतेपोतानी क्रियासंपन्न ज होय छे,
क्रिया वगरनो कोई पदार्थ होतो नथी. एटले मारा ज्ञानसिवाय बीजा
कोई अजीवनी के बीजानी क्रिया हुं करुं एम माननारा जीव अज्ञानी
छे. ज्ञानी तो ज्ञानक्रियाने ज पोतानी जाणीने तेनो ज कर्ता थाय छे.
ज्ञानीनी क्रिया ज्ञानमय छे, अज्ञानीनी क्रिया राग–द्धेषमय छे, जडनी
क्रिया जडमय छे. त्रणे क्रियाने बराबर ओळखनार जीव जडनी अने
विकारनी क्रियानो अकर्ता थईने पोताना ज्ञाननी वीतरागी क्रियाने करे
छे. आवी क्रिया ते मोक्षनी क्रिया छे, ते धर्मनी क्रिया छे.