तत्त्वथी बहार छे. सहज शुद्ध ज्ञानचेतनारूप मारुं तत्त्व अतीन्द्रियसुखने भोगवनारुं
छे, ते ज मारा श्रद्धा–ज्ञानादि सर्वे पर्यायोमां उपादेय छे. आम स्वतत्त्वने एकने ज
उपादेय करीने तेमां अंतर्मुख एकत्वभावनारूपे परिणमेला मारा आत्मामां आनंदना
सुंदर फूवारा प्रगट्या छे....असख्यप्रदेशे अनंतगुणनो अतीन्द्रिय बगीचो खील्यो छे.
तेमांथी कांई शांतिनो धोरियो नीकळतो नथी.
चैतन्यमां एकत्वभावना ते मोक्षना बागने पोषवानो फूवारो छे.
ऊछळशे, ने संसारनुं वन सुकाई जशे, जन्म–मरण मटी जशे. माटे आवा आत्मानी
भावना कर.
उत्तर :– हा; तेनामां ज्ञानक्रिया न होय पण जडकिया तो होय.
छे. जीव के अजीव दरेक पदार्थ पोतेपोतानी क्रियासंपन्न ज होय छे,
क्रिया वगरनो कोई पदार्थ होतो नथी. एटले मारा ज्ञानसिवाय बीजा
कोई अजीवनी के बीजानी क्रिया हुं करुं एम माननारा जीव अज्ञानी
छे. ज्ञानी तो ज्ञानक्रियाने ज पोतानी जाणीने तेनो ज कर्ता थाय छे.
ज्ञानीनी क्रिया ज्ञानमय छे, अज्ञानीनी क्रिया राग–द्धेषमय छे, जडनी
क्रिया जडमय छे. त्रणे क्रियाने बराबर ओळखनार जीव जडनी अने
विकारनी क्रियानो अकर्ता थईने पोताना ज्ञाननी वीतरागी क्रियाने करे
छे. आवी क्रिया ते मोक्षनी क्रिया छे, ते धर्मनी क्रिया छे.