Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४९८ आत्मधर्म : २५ :
सम्यग्दर्शन : ते संबंधी मुमुक्षुओनुं घोलन
*
[आत्मधर्मनी ‘सम्यक्त्व संबंधी निबंधयोजनामां’ ९६ निबंधो
आवेला; घणा खरा निबंधो सम्यक्त्वभावनाना घोलनपूर्वक उत्तम रीते
लखायेला छे. आ निबंधोमांथी आठ श्रेष्ठ निबंधोने पसंद करवामां
आव्या छे, ने तेमांथी बे निबंध संशोधनपूर्वक अहीं आपवामां आव्या
छे. सम्यक्त्वनी भावनाथी भरपुर आ निबंधो वांचतां दरेक जिज्ञासुने
प्रसन्नता थशे. आमांथी प्रथम निबंधना लेखिका बेन छे––मुंबई
(मलाड) ना कुमारी धर्मिष्ठाबेन धीरजलाल जैन
B. Sc. ने बीजो
निबंध लखनार छे–चोरीवाडना भाईश्री मगनलाल हीराचंद शाह.]
• सम्यग्दशन लखमळ : लख न : १ •

आत्मसन्मुख जीवनी निर्विकल्पदशा न थई होय त्यारे ते पोतानी
चैतन्यवस्तुना ऊंडा–ऊंडा चिंतनद्धारा निर्विकल्प दशा प्राप्त करवानो प्रयत्न करे छे.
एक चिदानंद, विज्ञानघन स्वभावनुं घोलन ते तेनुं ध्येय रहे छे.
प्रथम ज्ञायकस्वभावना लक्षे विचारधारामां ते जीव स्वरूपध्यानमां स्थित
रहेवानो उद्यमी थाय छे. प्रथम ते नोकर्म, द्रव्यकर्म अने भावकर्मथी भिन्न चैतन्यस्वरूप
आत्माने लक्षमां लईने, स्व–परनुं भेदविज्ञान करे छे.
प्रथम तो विज्ञानघन स्वभावने लक्षमां लई, नोकर्म एटले जड शरीर, बाह्यना
संयोगो, स्त्री, पुरुष, मिल्कत आदिने जे पोताना मानतो हतो तेमांथी द्रष्टि उठावी ले
छे. संयोगो तेने तुच्छ लागवा लागे छे. अने ते संयोगो ते हुं नहि तेम तेने भासवा
लागे छे; तेनाथी भिन्न हुं कंईक जुदी चीज छुं अने त्यांज साची शांति छे. तेम लाग्या
करे छे. तेने आत्मानी ज धून लागे छे.
द्रव्यकर्म ते जड छे; ते–ज्ञानावरणीय–दर्शनावरणीय आदि आठ कर्मोने ते