छे. कर्म जे जडरूप छे ते मारां केम होई शके? हुं तो चेतन छुं–एम ते निर्णय करे छे.
धून लागे छे. विकल्प होवा छतां तेनो निषेध करीने, ज्ञानमां चैतन्यज्ञायक आत्माने
लक्षमां लई तेना अनुभवनो उद्यम करे छे.....हुं विज्ञानघनस्वरूप आत्मा, विकल्परहित
केवो छुं–ते तरफ ज्ञानने सन्मुख करवा उद्यम करे छे.
अने विकल्परहित आत्मानां ज विचारमां लीन रहे छे... तेम तेम चैतन्यनी शांतिनी
तेने झांखी थती जाय छे ने विश्वास आवे छे के शांतिनो कोई अगाधसमुद्र मारामां
ज भर्यो छे.
चैतन्यनुं नूर छुं–तेवा निर्मळ विचारो आव्या करे छे. जडनो के अचेतन विकल्पोनो
मारी शुद्ध अनुभूतिमां प्रवेश नथी, ते तो चैतन्यनी जातथी जुदा छे.
अंदर लई जवा मथे छे; तेमां ज तेने सुख देखाय छे. मुमुक्षुने विकल्पथी थाक लागे ने
चैतन्यनी कंईक शांति देखाय त्यारे ज ते निर्विकल्प थईने अंदर जवानो प्रयत्न करेने?
आत्मार्थनी सिद्धिमां बाधक तेवा परिणामोने उग्रपणे छोडे छे. तेने बस! एक
आत्मानो रस पीवानी ज धगश लागी छे. तेने आत्मस्वरूप केवुं छे? ते समजवानी ज
लगन लागी छे. तेने एम थाय छे के अहा, ज्ञानीओ जेनां आटला वखाण करे छे ते
आत्मद्रव्य केवुं छे? ते फरी फरीने अंदर मंथन करी करीने पोताना आत्मा