Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४९८ आत्मधर्म : २९ :
भेदज्ञान थतां जीव आस्रवोथी पाछो वळे छे, बंध भावथी छूटी मोक्षमार्ग तरफ
वळतोजाय छे. सम्यक्ज्ञानी असार अने अशरण एवा संसारथी पाछो वळे छे, ने
परमसारभूत शरणरूप एवा पोताना ज्ञायकस्वभाव तरफ झूके छे. भेदज्ञान थतां
चैतन्यपरमेश्वर पुराणपुरुष प्रकाशमान थाय छे, अने अतीन्द्रिय शांतिसहित ज्ञानज्योति
झळहळी ऊठे छे. आवुं सम्यग्दर्शन छे–ते आत्मा ज छे. आ सम्यग्दर्शन थतां विकल्प
तूटीने उपयोग स्वतरफ वळे छे, एटले भेदज्ञान थई प्रमाणज्ञान थई गयुं छे, पछी हवे
तेनो उपयोग पर तरफ जाय त्यारे पण ते भेदज्ञान–प्रमाण तो साथे ने साथे ज वर्ते छे.
विकल्पथी छूटुं पडीने चेतन्यमां तन्मय थयेलुं ज्ञान फरीने कदी विकल्पमां एकमेक थतुं
नथी, छुटुं ने छुटुं रहे छे तेथी तेने मुक्त कह्युं छे:
स हि मुक्त एव.’
आ तो धर्मीनी अंतरनी वातो थई; परंतु बाह्यना कषायो पण घणा नरम पडी
गया होय छे, सात व्यसननो त्याग होय छे, बाह्य संयोगोथी तेवुं चित्त उदास रहे छे,
चैतन्यनी परमशांति पासे पुण्य–पापना भावो तेने भठ्ठी जेवा लागे छे. सम्यक्द्रष्टिने
ओळखाणपुर्वक जेवुं बहुमान साचा देव–गुरु–शास्त्र उपर होय तेवुं मिथ्याद्रष्टिने होतुं
नथी. सम्यग्द्रष्टिना व्यवहारपरिणाम पण चारे पडखेथी मेळवाळा होय छे.
सम्यक्दर्शननी साथे तेनामां निःशंकता, निःकांक्षा, साधर्मीप्रेम, धर्मप्रभावना
वगेरे आठ अंगो पण अपूर्व होय छे. तेने आत्माना स्वभावमां निःशंकताने लीधे
मृत्यु वगेरे संबंधी सात भय होता नथी. ज्ञानचेतनारूप थयेलो होवाथी ते कर्मोने तेम
ज कर्मनां फळने पोताथी अत्यंत भिन्न जाणे छे.
आवा अपूर्व महिमावंत सम्यग्दर्शननी जेने शरूआत थई ते ईषत्सिद्ध छे अने
ते पुर्णतानी एटले के सिद्ध दशानी प्राप्ति करावे छे.
`आवुं सम्यक्दर्शन पामेल सर्वे आराधकोने कोटी–कोटी वंदन.
आतमदेव सुंदरी छे,
सुंदर ने वळी सुखी छे;
मित्रो मानी लेजो सर्वे,
के व ळी नी वा त छे .
आ केवळीनां कहेण छे,
जेमां अमृत वहेण छे;
स्वीकारी तुं आज ले,
तो मुक्ति तारी काल छे.